आज जो आर्थिक हालत हैं तनिक इनके बारे भी सोचिये, बिना देश के राजा नहीं होते हैं अगर होते हैं तो उनको वह सम्मान नहीं मिलाता जिसका वे अपेक्षा रखता हैं।
बुधवार, 28 अगस्त 2013
मंगलवार, 27 अगस्त 2013
भोजन की सिक्यूरिटी बिल ना भोजन की गारंटी और ना ही वोट की गारंटी …?
सरकार ने जिस आनन फानन में भोजन की सिक्यूरिटी बिल संसद में पास करवाई गई, इससे सिर्फ यही अंदाजा लगया जा सकता है कि सरकार इसी के रहमो करम पर आगामी लोक सभा के साथ साथ पांचो राज्य की चुनावी नैया का पार लगाने का सपना देख रही थी पर अफ़सोस !, जनता ने इसके प्रति ज्यादा सहानभूति नहीं दिखाई। क्यूंकि इसमें बहुत सारे खामियां हैं जिसे दो शब्दो में बयाँ नहीं किया जा सकता हैं पर ये तो तय है कि एक किलो चावल और पांच किलो गेंहू से एक आदमी को एक महीने के लिए गुजारने करने के लिए अप्रयाप्त हैं। इससे काफी प्रभावशाली योजनाए विभिन्न राज्यो में पहले से लागु हैं, जो कई मायने इनसे बेहतर और लाभकारी है।
काफी जहोजहद के बाद फ़ूड शुरक्षा बिल आखिरकार संसद में पास हो गया , बरहाल पास होते ही ढेर सारे प्रश्न को भी जन्म दे गये । सारे प्रश्न में, सबसे जटिल प्रश्न यह हैं कि इसके लिए फंड कहाँ से आएगी ? इस सवाल पर UPA अध्यक्षा दिग्भर्मित करके सवाल का जबाब देने से ताल गयी थी , लेकिन आने वाले कल में इसका जबाब ढूढना ही पड़ेगा। क्या बांके इस बिल की जरुरत थी या चुनावी नैया पार करने के लिए ही कांग्रेस की तरफ से गरीबो एक और लोली पॉप तो नहीं दिया गया , क्यूंकि देश की आर्थिक स्थिति बहुत ही दैनिये हैं, जो दिशाहीन और गतिहीन हैं। इस परस्थिति में सरकार कहाँ से फण्ड की इन्तेजाम कर पायेगी? अन्तः दो पगबिंदु पर चलेगी सरकार , चाहे देश की GDP के ऊपर प्रहार करेगी, नहीं तो फिर मध्यवर्ग आम आदमी की जेबे ढीली करेगी अथबा दोनों भी कर सकती हैं। क्या एक वर्ग को फायेदा पहुचाने के लिए दुसरे वर्ग के ऊपर बोझ देना उचित हैं? जबकि उनकी माली हालत बिल्कुल प्रतिकूल हैं ? मध्यवर्ग इस बोझ को झेल पाएंगे या नहीं इसका भी सरकार को जबाब देनी चाहिए। दूसरी सबसे बड़ा प्रश्न यह हैं कि क्या इसका पूर्णत लाभिंत हो पायंगे जो इसके वास्तविक हक़दार हैं?, जिस कदर देश में राशन प्रणाली लचर स्थिति में हैं उससे साफ अन्दजा लगाया जा सकता हैं इसका सबसे ज्यादा फायदा राशन बितरक उठा ले जायेगा और इसका ज्वलंत परमाण शायद राशन वितरक से भेंट मात्र से ही पता चल जायेगा, किस कदर वे लुट मचा रखे है। और अंत में एक सबसे बड़ा प्रश्न यह हैं कि जैसे अन्य योजना भर्ष्टाचार का जरिया बना पड़ा हैं वैसे ही यह योजना भर्ष्टाचार का बढ्बा तो नहीं देगा? अभि तो लोकसभा में पास हुआ अब देखना हैं कि विपक्ष अपनी अधूरी मंशा राज्यसभा पूरी कर पायेगा अथबा नहीं क्योंकि लोकसभा में सरकार ने मेजोरिटी के बलसारे संसोधन को ख़ारिज करवा ली। यदि इनकी सफलता और असफलता की बात अभी कही जाए तो शायद ओचित्य नहीं होगी। इसका ठोस परिणाम के बारे तब अवगत हो पायेगे जब इसको पूरी तरह से पुरे देश में लागु किया जायेगा।
रविवार, 25 अगस्त 2013
दिल खिल उठा, मन की बगियाँ गुलजार हो गए,
यांदो ने ली करबतें, ख्यालो में फिर से बहार हो गए
बड़ी मुद्दत से आपका जो आज दीदार हो गए................
हवाओं ने ली अंगराई, फ़िजा महकने लगी
दबी थी जो हसरतें, फिरसे बेक़रार हो गए
बड़ी मुद्दत से आपका जो आज दीदार हो गए..................
नदिया लहराने लगी, झरना गुनगाने लगा
नशीली ये रात चांदनी हुई, अजब सा ख़ुमार हो गए
बड़ी मुद्दत से आपका जो आज दीदार हो गए..................
वही अल्हरपन, वही लड़कपन करने लगे हैं हलचल
कशमकश की जिन्दगी से हम बेज़ार हो गए
बड़ी मुद्दत से आपका जो आज दीदार हो गए..................
ओ सावन की फुहारे, ओ भादो की अँधेरी रातें
जुगनू की अटखेलियाँ, कितने शाल हो गए
बड़ी मुद्दत से आपका जो आज दीदार हो गए..................
यूँ मिलते रहो फुरशत में,ढूढें उस भूले विशरे बचपन को
बेमुरब्बत आज से कल की शादगी बेकार हो गए
बड़ी मुद्दत से आपका जो आज दीदार हो गए..................
दिल खिल उठा, मन की बगियाँ गुलजार हो गए,
यांदो ने ली करबतें, ख्यालो में फिर से बहार हो गए
बड़ी मुद्दत से आपका जो आज दीदार हो गए............
यांदो ने ली करबतें, ख्यालो में फिर से बहार हो गए
बड़ी मुद्दत से आपका जो आज दीदार हो गए................
हवाओं ने ली अंगराई, फ़िजा महकने लगी
दबी थी जो हसरतें, फिरसे बेक़रार हो गए
बड़ी मुद्दत से आपका जो आज दीदार हो गए..................
नदिया लहराने लगी, झरना गुनगाने लगा
नशीली ये रात चांदनी हुई, अजब सा ख़ुमार हो गए
बड़ी मुद्दत से आपका जो आज दीदार हो गए..................
वही अल्हरपन, वही लड़कपन करने लगे हैं हलचल
कशमकश की जिन्दगी से हम बेज़ार हो गए
बड़ी मुद्दत से आपका जो आज दीदार हो गए..................
ओ सावन की फुहारे, ओ भादो की अँधेरी रातें
जुगनू की अटखेलियाँ, कितने शाल हो गए
बड़ी मुद्दत से आपका जो आज दीदार हो गए..................
यूँ मिलते रहो फुरशत में,ढूढें उस भूले विशरे बचपन को
बेमुरब्बत आज से कल की शादगी बेकार हो गए
बड़ी मुद्दत से आपका जो आज दीदार हो गए..................
दिल खिल उठा, मन की बगियाँ गुलजार हो गए,
यांदो ने ली करबतें, ख्यालो में फिर से बहार हो गए
बड़ी मुद्दत से आपका जो आज दीदार हो गए............
शनिवार, 24 अगस्त 2013
All MPs, are together in case of any issue in favor 2 them therefore this is example of those resolutions accepted without any argument.
Are We casting the vote and electing them for sitting in parliament for taking only decision in their favor?
Is this called democratic?..................................
Are We casting the vote and electing them for sitting in parliament for taking only decision in their favor?
Is this called democratic?..................................
शुक्रवार, 23 अगस्त 2013
अरे भैया, पार्टी के दफ्तर में प्याज का दुकान,
इलेक्शन से पहले यह कैसी झूठी मुस्कान
चावल महंगी, दाल मंहगी, ना दिखे सस्ती कोई आनाज
खानों को रोटी नहीं, क्या करंगे लेकर प्याज
जनाब, मिला दिया कितनो को खाक में और कितने को दिया हैं सर -ए -ताज
अच्छे अच्छे को ना छोड़ा हैं, सबको को रुलाया हैं, समझो ना इनको मामूली प्याज
गुरुवार, 22 अगस्त 2013
इस विपदा की घड़ी में,चाहिए एक और गाँधीपूरी हो हमारी आज़ादीलाये ऐसा आंधीहिमालय फट रहा हैं,गंगा करे उफानमिटटी अपनी वज़ूद ढूंढे,मुर्छित हुए किसानचाहिए एक और गाँधी…।मुन्नी भूखी सो रही हैं ,दम तोड़ रहा हैं रुपैयाभाबी की माँग सुंनी पड़ी,सहादत दे रहे हैं भैयाचाहिए एक और गाँधी…।महंगाई की ओले पड़े हैं,निगल रहा हैं भर्ष्टाचार,बेशर्मी ने हद कर दी,खो गए हैं शिष्टाचारचाहिए एक और गाँधी …।हर सूबे के हैं अपने मनसूबे,कैसी होगी आपसदारीमाफियाओ का राज हुआ हैं,किनको भाए ईमानदारीचाहिए एक और गाँधी …।चोरो के हाथ में चाभी हैं,बेईमान करे हैं कोतवालीस्विस बैंक जमा हैं पूजी,अपनी बैंक तो हैं खालीचाहिए एक और गाँधी …।देख इन भोले भाले को,जो बन पड़े हैं महज़बीभेद भाव में उलझा कर,बना रहे हैं अजनबीचाहिए एक और गाँधी …।
शुक्रवार, 16 अगस्त 2013
जिसने लूटा वे भी इस कदर ना लूटा की हो जाये हम कंगाल,
अपनो की ये हिमागत हैं गैरो का कहाँ से होता ये मजाल
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे सावाल …………
हर चिंगारी शोला बन गए क्या ये भी था इतेफाक
जर्रा जर्रा हिल गए इरादा था कितना उनका नापाक
इनके तपस में जल गए हमारी हरएक ख्वाब फिर भी ना किया कोई ख्याल
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे सावाल …………
आबुरु भी अब महफूज नहीं दोलत का किसे हैं शोक
अराजकता फ़ैल रही हैं , किसमें हैं दम जो लेगा रोक
चीखते रहे चिल्लाते रहे फिर भी हुआ ना कोई मलाल
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे सावाल …………
जवानों के सहादत पर वे हैं जो साधते रहे हैं अपना स्वार्थ
जिनके एक इशारे पर हजारो -लाखो हाज़िर हैं सेवार्थ
हम तो खातिरदारी करते रहे पर वे बुनते रहे जाल
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे सावाल …………
जिनका ना कोई महज़ब, धर्म और ना हैं कोई उसूल
अपनी हित खातिर सबकुछ निलाम करे,यही हैं इसका वज़ूद
आपस में हम लड़ते रहे, बनके हितेशी कराते रहे बबाल
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे सावाल …………
जमुहुरिहट के नाम पर परिवारवाद को साधते रहे
खामोश करके हमें हमारी मर्यादा को लाँघते रहे
हमारी थाली में नमक डालकर खुद हो गए मालामाल
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे सवाल …………
दुश्मन हमारे घर में घुस कर, करते रहे हम पर बार,पर किया ना पलटवार
हम जख्म ले कर निहारते उनके तरफ और वे करते रहे भष्टाचार
यह कैसा जनतंत्र हैं की जनता की वारी पांच शाल में एक बार.…
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे सवाल …………
अपनो की ये हिमागत हैं गैरो का कहाँ से होता ये मजाल
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे सावाल …………
हर चिंगारी शोला बन गए क्या ये भी था इतेफाक
जर्रा जर्रा हिल गए इरादा था कितना उनका नापाक
इनके तपस में जल गए हमारी हरएक ख्वाब फिर भी ना किया कोई ख्याल
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे सावाल …………
आबुरु भी अब महफूज नहीं दोलत का किसे हैं शोक
अराजकता फ़ैल रही हैं , किसमें हैं दम जो लेगा रोक
चीखते रहे चिल्लाते रहे फिर भी हुआ ना कोई मलाल
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे सावाल …………
जवानों के सहादत पर वे हैं जो साधते रहे हैं अपना स्वार्थ
जिनके एक इशारे पर हजारो -लाखो हाज़िर हैं सेवार्थ
हम तो खातिरदारी करते रहे पर वे बुनते रहे जाल
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे सावाल …………
जिनका ना कोई महज़ब, धर्म और ना हैं कोई उसूल
अपनी हित खातिर सबकुछ निलाम करे,यही हैं इसका वज़ूद
आपस में हम लड़ते रहे, बनके हितेशी कराते रहे बबाल
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे सावाल …………
जमुहुरिहट के नाम पर परिवारवाद को साधते रहे
खामोश करके हमें हमारी मर्यादा को लाँघते रहे
हमारी थाली में नमक डालकर खुद हो गए मालामाल
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे सवाल …………
दुश्मन हमारे घर में घुस कर, करते रहे हम पर बार,पर किया ना पलटवार
हम जख्म ले कर निहारते उनके तरफ और वे करते रहे भष्टाचार
यह कैसा जनतंत्र हैं की जनता की वारी पांच शाल में एक बार.…
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे सवाल …………
गुरुवार, 15 अगस्त 2013
सोमवार, 12 अगस्त 2013
शनिवार, 10 अगस्त 2013
मंगलवार, 6 अगस्त 2013
गुरुवार, 1 अगस्त 2013
हे इश्वर, हमें भी दे एक गोद्फादर
जिसका करू मैं सदैव आदर
जतन इतना हैं इस दिल में,
जिसको बयां करना आसान नहीं
चांदी का चमच किस्मत में ना सही
हो तेरा आसरा, फिर हैं क्या कमी
बना दे हमको मनमोहन
और सोनिया जैसी दे एक गोदमदर
मैं भी बोल सकता हूँ, जब कहे तो चुप रह सकता हूँ
जितना चाहे उतना मैं भी कर सकता हूँ कदर
हे इश्वर, हमें भी दे एक गोद्फादर
जिसका करू मैं सदैव कदर
चड्ढा हो या कांदा सब पर तेरा हैं दया दृष्टि
वाह रे ऊपर वाला तूने कैसी बनाई हैं श्रिष्टी
जो पहन न सके चाद्द्धि उसने सबको टोपी पहनाया
जिनके पैरो तले जमी नहीं, पटका असमान में फहराया
कुछ कर यूँ ना मोन रह, हैं विनीति सादर।
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