सोमवार, 23 सितंबर 2013

फिक्की बात:-कितनी हैरानी की बात हैं कि अनुमान मात्र पर एक आई. ए. एस. अधिकारी को निलंबित किया जाता हैं। जब लगभग तीन महीने तक न्याय पालिका और ही केंद्र सरकार से संतोष जनक जवाब न मिलता देख, अन्तः वह  असहाय अधिकारी उस सूबे के मुख्यमंत्री से मिलकर माफ़ी मांगते उस कारण जिसमे उनकी कोई गलती थी ही नहीं, तदुपरांत उस अधिकारी का  निलंबन ख़ारिज की जाती हैं। क्या जो अधिकारी अपने स्वाभिमान के साथ समझोता करके बिना अपराध की गलती मांगी हैं, अब वह इमानदारी और निष्ठा से काम कर पायेगी? और दूसरी सबसे गंभीर प्रश्न यह है की अपने राजनितिक हित साधने के लिए, क्या  इमानदार और कर्मनिष्ठ अधिकारी को बलि का बकरा नहीं बनाया जा रहा हैं ?
इस बीच में जो मुज़फ्फर नगर में दंगा हुआ जिसमे उसी  सूबे के मुख्यमंत्री का संवेदनहीनता और कई खामिया उजागर हुआ। क्या वे उनके लिए जनता से माफ़ी मांगगे  और जनता उनको माफ़ कर देंगे? जरा सोचिये, मैं ज्यादा कुछ नहीं कह सकता क्यूंकि इन दिनों अभिव्यक्ति पर भी पावंदी हैं।

रविवार, 22 सितंबर 2013

तेरे होठों के पंखुरी से फिर गुलाब खिल गया
देखा जो तेरे चिलमन एक अजब सा खुमार हो गया
पता नहीं क्यूँ कसमकस जीने लगा हूँ मैं
पर हाल में ही दिल यह ने जाना कि प्यार हो गया

शनिवार, 21 सितंबर 2013


फिक्की बात:- "प्याज -प्याज , बेतवा ये प्याज नाही कोई ताज हो गया, जंहा देखो वंहा इसी का बात करते हैं, अरे हमारे ज़माने में लहसुन, प्याज लोग घर में भी नाही रखते थे" एक बूढी अम्मा ने कही अपने पोता से"
बड़े इतिम्नान से पोता ने जवाब दिया " अम्मा जी, अब ओ प्याज ना  रहा, अब घर में नहीं लोग तिजोरी में इन्हें रखते  क्यूंकि अब इनमें सरकार गिराने का दम-खम रखता हैं।"
फिक्की बात :- "सर, मुलायम जी का केस बंद कर दिया " सीबीआई ने पूछा ।
                        "ऐसा करो कुछ दिन आराम करो मैं बी. के. सिंह के फाइल खोलने का तैयारी करता हूँ "
                     "ठीक हैं, जो हुक्कुम, सर ……… "

शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

फिक्की बात :-आज मेरी बात MTNL चेयरमैन के PRO से हुई और उन्होंने मेरी शिकायत को GM को फॉरवर्ड किया। GM साहेब का फ़ोन आया मेरे पास और कहने लगे आप को  अगर तकलीफ हैं तो क्या आप PM को ही फ़ोन करेंगे ? जनाब, नीचे के ऑफिसर जब नहीं सुनगे तो कंहा जाया जाय ? मैंने उनको बताया मुझे लैप-टॉप में दिक्कत हुआ और मैं यंहा के कस्टमर केयर ऑफिसर से संतुष्ट नहीं हुआ, उसी वक्त मैंने Michel Dell को ईमेल किया, अगले दिन मुझे रिस्पांस आनी शुरू हो गयी लेकिन आपके पूरे सिस्टम को मैं लगभग १५ दिन से  संपर्क कर रहा हूँ पर अभी तक समस्या का निदान नहीं हुआ। साहेब, जिस देश का प्रधानमंत्री  ना ही सुनते हैं और ना ही बोलते हैं उस देश में और कौन सुनेगा? फिर भी हमें गर्व हैं कि हमारी हालत उतनी ख़राब नहीं जितनी अन्य एशियाई देशो का हैं।  शायद यंहा के पब्लिक में दम ख़म इस तरह का हैं कितनी विषम स्थिति हो पर हार नहीं मानते है।  जय हिन्द , जय भारत, जय आम आदमी !!!     

फिक्की बात:- पूर्व सेना अध्यक्ष बी. के. सिंह  बीजेपी मंच पर जैसे ही नजर आये कांग्रेस सरकार  ने उनके खिलाफ  ताना  बाना बुनने लगे, अब देखना हैं  CBI को उनके पीछे  कब लगाते हैं?
फिक्की बात :- देश में  बाबा के मुखोटा पहनकर ना  जाने कितने ढोंगी ना सिर्फ धन दोलत लुटते हैं ब्लीक अयाशी और गैर क़ानूनी काम भी करते है।  क्या इन लोगो के पास जिस तरह से अबैद्य सम्पति हैं, उसे सरकार अपने कब्जे में ले कर गरीबो के हित में उपयोग नहीं करनी चाहिए और इन ढोंगी बाबा को सलाखें के पीछे नहीं डालनी  चाहिए ?
फिक्की बात :- अभी के जो राजनीती गतिबिधिया हैं, उसमे सबसे दुबिधा में नितीश कुमार है। शायद उनको अभाश हो ना  हो पर यह सच हैं की कांग्रेस उनको भाव देनेवाले नहीं हैं और भाजपा उनके पास जाने को तैयार नहि होंगे। इस विषम परिस्थिति में उनके सारे सोशल समीकरण धरा के धरा ही रह जायेंगे। उनका हाल धोवी के कुत्ता जैसे ना  हो जाय जो ना  घर का और ना घाट का। यह उन्हें कौन समझाए ………

गुरुवार, 19 सितंबर 2013


फिक्की बात :- *लोकतंत्र में अगर धर्मनिरपेक्ष  अगर कोई चीज हैं तो वे  प्याज हैं, यदि मैं गलत नहीं हूँ तो प्याज को क्यूँ ना धर्मनिरपेक्ष का सिंबल बना दिया जाय*

नदियों ने कभी जात ना  पूछे  , हवा ना  पूछी कभी धरम
भेद भाव हम मतवाले ना जाने,  फिर काहे को करे भरम


सरकारी और प्राइवेट फर्म में फर्क का अन्दजा इसी बात से लगाया जा सकता हैं की लैपटॉप में सिकायत आइ तो मैंने एक  मेल लिखा Michel DELL साहब को और उन्होंने फ़ौरन इस कारवाई के लिए भेज दिया जबकि सरकारी कंपनी MTNL के चेयरमैन को कई बार मेल लिखा ब्रॉड बैंड में शिकायत के विषय में लेकिन अभी तक उनका ना कोई जवाब और ना ही कोई करवाई देखने को मिला।

बुधवार, 18 सितंबर 2013


बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को शायद यह अभाश हो चूका होगा की उन्हें जो फैसला लिया उनका परिणाम काफी प्रतिकूल होगा और इसका आगाज़ हो चूका हैं।  आज बिहार में वही हालात हो गया जो ९ शाल पहले हुआ करता था लेकिन शायद इस बात को माने या न माने लेकिन बिहार में सब कुछ सामान्य नहीं हैं।

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013


शहर बसते हैं घर से, मकान तो सिर्फ नुमाइश के लिये होते हैं
 रिश्ता तो यूँ ही बन जाते हैं, मिलके अपनोके ख्वाव संजोते हैं
ना  करो जुरअत ऐसी की, उनके ख़ुशी और गम से ना वास्ता हो
गर मिलो तो सरम से सर झुक जाये, और छुपने  का ना रास्ता हो

गुरुवार, 12 सितंबर 2013


कबीरा सत्संग नेता का, दूर हो जाये इमान, चरित्र  और शील
आदर, सम्मान तो लोभ मात्र हैं पीछे सब करते हैं इनको जलील


बुधवार, 11 सितंबर 2013



हम जाये तो जाये कंहा, एक तरफ कुआँ दूसरी तरफ खाई हैं
खुदगर्ज इस  दुनिया में ना कोई माई और ना  कोई भाई है
इनकी मासूमियत पर ना जाओ, एक दिन का ये अभिनेता हैं
सफ़ेद लिबाज़  के पीछे जो रंगीन चेहरा है वही तो नेता हैं





घर जल रहा था मेरा  पर चूल्हे में आग नहीं
जल गयी हर एक ख्वाहिश पर पकी साग नहीं
इतने बहे आशुं  आँखों से की बहने लगी समुंदर
आशुं बुझा पाता आग, काश ! होता ना ऐसा मंजर

  इस कदर अराजकता देखने को  पहले कभी नहीं मिला था जो इन दिनों देखा जा सकता है

वैसे तो उम्र और अनुभव के लिहाज से  मैं कोई  दावा नहीं कर सकता लेकिन इतना जरुर कहूँगा की  इस कदर अराजकता देखने को  पहले कभी नहीं मिला था जो इन दिनों देखा जा सकता है। वोट की राजनीती के खातिर चंद मुठी भर लोग बेगुनाहों का खून बहा रहे, हर कोई दुसरे को दामन को मैले कहते पर यह सच हैं की किसी का भी दामन पाक नहीं हैं। ढूढने पर सबके दामन पर कीचड़ की छीतं हैं। देश में एक तरफ खादी पोशाकपोश लुट और व्यवसन फैला रहे हैं दूसरी तरफ ब्यूरोक्रेसी ने अपनी जवाबदेहि से मुख फेर लिए हैं। यदि  दस से बीस हजार का अगर कंप्लेन R.B.I. को किया जाय तो बहाने बनाकर तीन चार महीने तक यूँ चांज करते रहंगे और जब उनसे कंप्लेन के कारबाई के बारे में जानकारी मांगी जाय तो यह कह कर पला झाड़ लेते हैंकि कंप्लेन  ख़ारिज कर दिया क्यूंकि की उनके पास टाइम ही नहीं इन छोटी-छोटी समस्याओ को निपटाने के लिए। वाकई हैरानी की बात नहीं हैं
रुपैया की हालत  देखकर उनका संजीदा का  आकलन इसी बात की जा सकती हैं कि  कितनी जवाबदेही से काम कर रहे हैं।  डिपार्टमेंट ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स एंड पब्लिक गरीवन्सेज  जो पीएमओ के अन्दर आते हैं, जिस तरह से इनका काम काज हैं यह  कहना कतई गलत नहीं हैं की PM के तरह ही ये भी मौन हो गए हैं। इसी का नतीजा हैं की हर तरफ लुट मची हैं।
वैसे भी सरकार का  काम काज  संतोषजनक नहीं हैं पर जिस कदर ब्यूरोक्रेसी का रवैया हैं  उससे  लोग निराश और हताश हैं और लोग इस तरह के अराजकता से त्राहिमाम कर रहे हैं।  एक तरफ लोग मंहगाई से त्रस्त हैं दूसरी तरफ  अराजकता और भ्रष्टाचार से खिन्न हैं,  लोगो को समझ में  नहीं आ रहा हैं की आखिरकार इन जटिल समस्या का समाधान कौन करेगा? अगर बात सांसद का हो तो अपने  पक्ष में बिना कोई बिघ्न के  सारे विधयक पास करा लेते हैं चांहे सर्वोच्य न्यायलय के  खिलाफ ही क्यूँ ना जाना पड़े।  पर जब बात आम आदमी के हक से जुडी हो तो सांसदों हिसाब किताब करने बैठ जाते हैं की इस बिल को पास कराने से उनका राजनीतीक लाभ कितना होगा  और यही वजह हैं कि  कुछ बुनयादी और जरुरत की बिल  भी लम्बे  अर्से  से संसद में लटके पड़े हैं।
चाहे केंद्र सरकार हो अथवा राज्य सरकार आम आदमी उनसे जान माल का सुरक्षा की आशा करते हैं, पर ना केंद्र सरकार और ना ही राज्य सरकार आम आदमी की सुरक्षा की गारंटी  देती  लेकिन भोजन  की गारंटी देती हैं क्योंकि इसमें उनको जो  अपना वोट नजर आते  हैं।  जिस कदर अंतरकलह हैं इसीका परिणाम हैं कि  चीन और पाकिस्तान  हमें आँख दिखा रहे हैं, मुंह तोड़ जवाब देने के बजाय हमारी सरकार नजरंदाज कर रही हैं।  दिल्ली हो या कोलकता दस से  बीस  प्रतिशत बंगलादेशी रेफुज़ी हैं जिसको  सरकार ने वोट बैंक के लिए सरक्षण  दे रखी हैं, परिणाम स्वरुप ये लोग क्राइम में लिप्त हैं जिससे वंहाके आम आदमी हमेशा अपने को असुरक्षित महसूस करते हैं और उन लोगो को पोलटिकल लोगो का इतना सह मिलाता हैं की उनके होसला बुलंद हैं नतीजन दिन दहाड़े लुट और डकैती  जैसी घटनाओको अंजाम देते हैं पर स्थानीय लोग इतना   भी हिम्मत  नहीं जुटा पाते  हैं की उनके खिलाफ पुलिस कंप्लेन  कर पाए। अगर बिशेष परिस्थिति में   कंप्लेन कर भी दिए तो पुलिस की मजाल नहीं उनके खिलाफ कोई  करवाई कर सके। पुलिस तो पहले से सवेदनहीन हुए पड़े हैं नहीं तो लोगो में इनके प्रति इतना उदाशीनता क्यूँ होता ?
परिस्थिति कितनी ही विपरीत हो  पर हम आशावादी हैं और आशा करते हैं कि अब अति हो रहा हैं, तक़रीबन इन सभिका  अंत सुनिश्चित हैं।  देखना यह कि अंत यधासिघ्र होता हैं या अभी और हमें इंतजार करना होगा………



रविवार, 8 सितंबर 2013


 गुलामी में ही थे महफूज, आज़ादी ने तो हताश दिया
इन आदमखोर से बच  निकलना , अब आशान नहीं
कानून तो इनके मर्जी  में हैं, क्या  ये जंगल राज नहीं
उनका भी आशियाँ हैं हमारे शहर पर  वे इंशान नहीं





इतनी मर्दन हुई मेरे जख्म को की अब ये भी शिथिल गयी
आखियों में भी अब नमी नहीं जो अश्क बनके अपनी दर्द को बयां करे!
करके लाख कोशिश, इस भ्रष्ट तंत्र में खुद को ना बचा पाया,
अब सांसे पर कर लगा दिए, गिन गिन कर आखिर कब तक जीया करे !!!


शुक्रवार, 6 सितंबर 2013


कैसे कहे हम हिदुस्तानी हैं
जिस तरफ देखो बेमानी हैं
राजा चोर, चोर हैं सारे सिपहसलाहकार
क्या होगा इस देश का जंहा सिर्फ हैं भ्रष्टाचार