रविवार, 20 सितंबर 2015




 बिहार चुनाव में ये बेगाने कौन ?


बिहार में शिवशेना और ओबैशी चुनाव लड़ेंगे आखिर चुनाव के जरिये क्या टोटलने का प्रयास में लगे है दोनों पार्टी  या इनके मकसद चुनाव जीतनका नहीं बल्कि कुछ और ही है ? क्या चुनाव के जरिये ओबैशी आगामी उत्तर प्रदेश के चुनाव के रणनीति  को जोरकर तो नहीं देख रहे है क्यूंकि बिहार और उत्तर प्रदेश में मुस्लिम की जनसँख्या लगभग में १ ५-१७  प्रतिशत है जिसमें से ज्यादात्तर लोग ओबैशी को अपने रोल मॉडल मानते है ऐसे ही लोगो के झुकाव को देखते हुए ओबैशी उत्तर प्रदेश और बिहार में चुनाव लड़ने की जुर्रत करेंगे अन्यथा इन्होने बिहार और उत्तर प्रदेश के मुस्लिम भाइयों के लिए अभि तक कुछ  भी नहीं किया और जँहातक इनसे कुछ उम्मीद करना भी मुनासिब नहीं होगा क्यूंकि इनके फिदरत में कुछ करने की चाह है ही नहीं, वे सिर्फ अलगाववादी राजनीती के हिमायती है, जो धर्म और महजब के नाम पर जहर उगलते है और इस जहर को लोगो के बीच परोसकर अपना उल्लू सीधा करते है।

दूसरी तरफ शिवशेना भी बिहार के चुनाव  के लिए कमर कस ली है  यद्दपि जीतने के लिए तो कतई नहीं पर अन्य पार्टी की चुनावी समीकरण को तहश -नहश करने लिए हो सकता कुछ सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारे  जो कि  भाजपा और उनके गठबंधन के अंकगणित बिगाड़ सके।  वास्तविक में राजनीती में शर्म और हया के लिए कोई जगह नहीं होता है एक तरफ शिवशेना मुंबई में प्रवाशी बिहारी को नीचे दिखाने व पीटने का कोई मौका नहीं छोड़ते वहीँ बिहार चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारने के लिए काफी अग्रसर है आखिर किस भोरषे, क्या बिहार के मतदान में मराठी मानुष वोट गिराने के लिए तो नहीं आने वाले है?  अनुमानतः  भाजपा के साथ कटुता रही है इसी खातिर जो थोड़ा बहुत परेशान कर सकते उसमें कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते है शायद इससे बेहत्तर मौका फिलहाल मिलने है भी नहीं फिर क्यों छोड़ें ? हालाँकि शिवशेना यंहा जीतने के लिए  कदचित्त चुनाव नहीं लड़ेंगे यद्दपि भाजपा का एक दो प्रतिशत भी वोट काट काफी आघात पहुँचा सकते है और   महाराष्ट्र के चुनाव में भाजपा ने जो रणनीति अपनाई थी  उसका खामियाज़ा किस हद भाजपा से वसूल की जाती है इस बिहार के चुनाव में और ये भी सहज नहीं होगा कि इसकी  भरपाई कँहा और कैसे कर पायेगी ?  अब देखना यह भी है कि बिहारियों  के बीच में शिवशेना क्या छवि है, और कितने सीट पर  शिवसेना ज़मानत बचा पाती है क्यूंकि बिहारियों को भी ठाकरे बंधू के खिलाफ खीश है और हो सकता वे भी इसी चुनाव के माध्यम से बदला लेने में सफल हो जाये और ठाकरे बंधू को सबक सिखा पाये।

बरहहाल बिहार के चुनाव में कितने दोस्त दुश्मन बन जायेंगे और कितने दुश्मन दोस्त बन जायेंगे फिलहाल इनका अंदाजा लगाना आसान नहीं पर जो भी हो बिहार के चुनाव से पुरे भारत की राजनीति की तस्वीर और तक़दीर बदलने वाली है।  हाल में ही जनता परिवार महा गठबंधन में से सपा अलग हो गयी जो इस गठबंधन के लिए बहुत बड़ा झटका है अब इनसे जनता परिवार को कितना नुकशान होगा यह चुनाव के बाद ही निश्चित होगा पर इस बिखराव से महागठबंधन के विस्वनीयता के ऊपर ग्रहण तो लग ही गए।  अंतोगत्वा बिहार का चुनाव कई मायने से दिलचस्प होने वाले है अब देखना है कि  एक बिहारी सब पर कितना भारी है?




जँहातक  समर्थन  की बात है तो मैं भी चाहता हूँ कि बिहार में भाजपा की सरकार हो पर ऐसा होता नहीं दिख रहा है क्यूंकि इसका मुख्य वजह भाजपाई का अत्यधिक आत्मविस्वास जो इनके लिए नुकशानदेह हालाँकि  इसी प्रकार का आँकलन  दिल्ली के चुनाव भी दिया था पर किसी ने भी इनपर विस्वास नहीं कर पाया नतीजा सबके सामने है। कभी- कभी अत्यधिक आत्मविस्वास भी निराशा का कारण बनता है और यही हुआ था दिल्ली के चुनाव में पुनः एक बार यह देखने को मिलेगा बिहार के चुनाव में  यदि यथाशीघ्र जरुरी कदम नहीं उठाया गया।  बिहार के चुनाव का परिणाम लोगों को झकझोड़ देने वाले होंगे इंतज़ार कीजिए उस क्षण को जब कल्पना से परे सबकुछ होनेवाले है।  यदि भाजपा को फायदा मिलेगा तो एक ही कारण  से कि नीतीश जो  लालू के साथ गए अन्यथा सब कुछ वँहा पर विरुद्ध ही जा रहे है। यद्दपि  टिकट वटबारें को लेकर भी भाजपा को आगाह करना चाहूंगा कि बाहरी और अयोग्य उम्मीदवार को जीतना बड़ी मुश्किल है पचास प्रतिशत ही उम्मीद किया जा सकता है कि इस तरह का उम्मीदवार चुनाव जीत पाएंगे।  एक बात तो शुनिश्चित है कि बिहार चुनाव के परिणाम आने के बाद बड़े -बड़े ज्योतिषिचार्य और अंकगणित विशेषज्ञ का सभी सभी के जोड़ -घटाऊ का हवा निकलनेवाला है। वेट एंड  वॉच ......................... !!!


शुक्रवार, 4 सितंबर 2015


घर की मुर्गी दाल बराबर..........?

"घर की मुर्गी दाल बराबर" वास्तविक में इन दिनों यह कहावत का तातपर्य रह नहीं गया क्यूंकि इनदिनों लोग मुर्गी नहीं दाल के लिए तरस रहे है।  मंहगाई के मार में प्रायः अधिकतर लोगो के घर इनदिनों दाल नहीं गलते इसीलिए तो दाल और मुर्गी के मूल्यों में तुलना करेंगे तो पाएंगे कि मुर्गी खानेवालों के लिए मुर्गी सस्ती हो गयी और दाल मंहगा।  सरकार क्या करे? जमाखोरों ने जो लागत लगाये थे चुनाव के दौरान उस ऐवज़ में मुनाफा तो वसूलेंगे ही, क्यूंकि बिना फायदा का तो बाप भी बेटा का भला नहीं करते फिर चुनाव में करोडो -अरबो का खर्च के लिए पार्टी फण्ड में जो चंदे दिया उसके बदले में कुछ फायदा तो बनता ही है।
फिलहाल मुर्गी खाने वाले भी खुश नहीं है, क्यूंकि क्या करे, मुर्गी से ज्यादा मसाला भारी है नहीं समझे तो समझने  कोशिश कीजिये, फिर भी नहीं समझे , चलो  बता ही  देते है, " दो रुपये की मुर्गी नौ रुपये का मसाला" ऐसे में कौन मुर्गी खाए?, जनाब, बिना प्याज के सब्जी का स्वाद नहीं लगता फिर बिना प्याज का मुर्गी का स्वाद क्या होगा?, बरहाल मुर्गी भी नहीं खा सकते फिर क्या करेंगे नमक रोटी खा कर गुजारा कर लेंगे लेकिन बिना प्याज के नमक रोटी भी गले से नीचे उतरने में शरमाते हालाँकि चीनी के मिठांस का  मजा लिया जा सकता पर सिर्फ चीनी का ,  मिठाई का नहीं क्यूंकि मिठाई का मूल्य में दिनों दिन बढ़ोतरी हो रही है बेशक चीनी शुष्ट पड़ी हो वस्तुतः चीनी का भी ज्यादा मजा नहीं लिया जा सकता क्यूंकि इनका साइड इफ़ेक्ट का कोई तोड़ नहीं है और एक बार इन्होने अपनी ताक़त का अजमाइश कर दिया तो जिंदगी भर आपको  भुगतना पड़ सकता है ऐसे में चीनी से ज्यादा करीबी, नुकशानदेह है,  सावधान रहे!

दरअसल में एक तरफ ईंधन के मूल्य में गिड़ावत वही सभी प्रकार के रोजमर्रा के वस्तु हो अथवा खाद्य प्रदार्थ उनके दाम नीचे जाने के बजाय आसमान को छूने में लगे हुए है ऐसे परस्थिति में सरकार और वृत्त मंत्री  के योजना पर प्रश्न चिन्ह  लगाना कतई अनुचित नहीं है क्यूंकि किसी भी तरह के उत्पाद वस्तु हो व आनाज अथवा साग सब्जियों का मूल्य जिस तरह से बेहताशा इजाफा  हो रहे है अत्यंत  चिंता का विषय है क्यूंकि देश के अधिकाधिक लोग के आमदनी में बढ़ोत्तरी काफी जद्दोहद के वाबजूद शुनिश्चित नहीं है कि होगी ही , जबकि मंहगाई रोज एक नयी कृतिमान स्थापित करने में लगी है। यद्दीप सरकार को सब कुछ ज्ञात है इसीलिए तो केंद्रीय कर्मचारी को मंहगाई के आधार पर DA में बढ़ोत्तरी करती रहती है पर ज्यादात्तर गरीब और किसान लोगों का क्या होगा?, जो कि   ८० से ८५ प्रतिशत जनसख्या के लिहाज से है, क्या वे इस बेइंतहा महंगाई से प्रभावित नहीं हो रहे है?, क्या सरकार को इनके लिए कोई जवाबदेही नहीं बनती है?, अगर सच में सरकार इन लोगों प्रति संवेदना रखती है तो क्यों न यथाशीघ्र कारगर कदम उठाती है सरकार और अफसरशाहों  सरक्षण में ही जमाखोरी का खेल हो या उत्पाद वस्तुओं का दाम बढ़ाने का प्रतिस्प्रधा संभव है  अन्यथा सरकार पूरी सिद्दत  से इनके ऊपर नकेल कसें तो इस तरह अन्यास दामों में बढ़ोत्तरी को रोकी जा सकती है , पिछले एक साल में ज्यादात्तर दवाइयों  के दाम में  २० से ४० प्रतिशत  बढ़ोत्तरी देखे गए है इसीलिए  लोग मंहगाई से लड़ने  में असमर्थता के कारण बीमारी से लड़ते रहते है हालाँकि सरकार छोटी -छोटी बातों का ख्याल कहाँ तक करे कारणस्वरूप जनता को उनके हाल पर छोड़ दिए है। 

आखिरकार कब तक एक वर्ग के लोगो के हित का उपेक्षा की जाती रहेगी क्यूंकि सियाशी दाँव -पेंच में संवेदना और विवेक भूल जाते है जिस कारण इनलोगों को सरकार के प्रति उदासीनता भलीभांति देखि जा सकती है जो कि भविष्य में एक क्रांति का जन्म देने के लिए काफी सिद्ध होगी। 

 
आपका क्या प्रतिक्रिया है मंहगाई के संदर्भ में जरूर अवगत करायेगा अपने टिप्पणी के माध्यम से।

गुरुवार, 3 सितंबर 2015


मानिये प्रधानमंत्री,
मैं आपसे अनुरोध करना चाहता हूँ कि इन दिनों ईंधन  के मूल्य और चीनी के मूल्यों काफी गिड़ावत  हुई वाबजूद इसके न मिठाई का दाम कम  किये गए और न रोजमर्रा के जरुरत के चीजों  के दामों  में गिड़ावत दर्ज देखे गये, मसलन सस्ते ईंधन होने का फायदा आम आदमी को नहीं मिल रहा है जबकि मुनाफाखोरों ने आम आदमी के जेबों को ढीले करने में लगे हुए है इसका मुख्या कारण  है कि  हमारे देश में  कॉमन प्राइस कंट्रोल कमिटी का न होना इसीलिए  खुदरा मुनाफाखोरों अपने सहूलियत के हिसाब से  वस्तु  का मूल्यांकन करते है।  दरअसल में जैसे  ईंधन का मूल्य बढ़ जाता है तो तुरंत मूल्यों में बढ़ोतरी करने से बाज़ नहीं आएंगे जबकि मूल्य घटाने के नाम पर कनि काट जायेंगे।  अन्तः  मैं देश के प्रधानमंत्री से सादर निवेदन करूँगा कि देश हित  व देश के  लोंगो  के हित को ध्यान में रख कर एक  कॉमन प्राइस कंट्रोल कमिटी का संरचना करने का  कृपा करे जो खुदरा जैसे रोजमर्रा के वस्तु, मिठाई  व पब्लिक परिवहन के किराये के ऊपर नियंत्रण रखे और ऐसे मुनाफाखोरों के ऊपर लगाम कसे जो अपनी सहूलियत के हिसाब से किसी भी वस्तु के मूल्य तय कर रहे है वे भविष्य ऐसा न करे।  जय हिन्द …। 

आजादी  तो हमने हाशिल कर लिए हैं पर आज भी हमारे बीच में बहुतो है जिनको  यह रास नहीं आते है पर   हम फिक्र क्यूँ करे इन अवसरवादी और ख़ुदगर्जों का,  आज़ादी हमारे पुरखो की विरासत है जिन्होने इसके खातिर क़ुरबानी दी है इसलिए आज़ादी हमारा मौलिक अधिकार है जबकि इनको बरकरार रखना हमारा कर्तव्य है, जय हिन्द, जय भारत!!

ब्राह्मण वर्तमान परिदृश्य में  सबसे नीच जाति है और शायद इसी के काबिल भी है  क्यूंकि ये सिर्फ खुदको लेकर ज्यादा चिंतित होते है जबकि  उनके आत्मसम्मान और विवेक अपनी जाति और धर्म के प्रति  तनिक भी शेष नहीं बचा ऐसे में जिस हाल में है इसके खुद ही जिम्मेवार है।  क्यूंकि चाहे शाशन हो या प्रशाशन आज भी इनके परामर्श के बिना कोई आरक्षण व कोई अन्य राजनितिक प्रेरित आत्मज्ञान इन आरक्षण के पुजारी हो अथवा राजनीती के दिग्गज हो ही नहीं सकता। मसलन एक हार्दिक पटेल पुरे  पाटीदार समुदाय को एक मंच पर  ला कर खड़ा कर देता है चाहे आरक्षण के समर्थन में ही क्यों ना हो पर यदि हम सवर्ण जो आज भी देश के बुद्धजीवियों में अच्छी खाशी तादाद में है, होने के वाबजूद भी  एक मंच पर नहीं  आ रहे जबकि यह लड़ाई पुरे देश के हिट में है क्यूंकि आरक्षण युक्त महापुरुष पद तो हाशिल कर लेते पर उसके गरिमा के साथ पूर्णतः न्याय नहीं कर पाते है नतीजा  देश में तीव्र दिम्माग के लोग मुंह तक्कु बने रहते है जबकि आरक्षण के कृपा से ऐसे लोग शीर्ष पदो पर आशिन होते है जिनके  निर्णयन लेने के क्षमता के प्रायः अनुकूल नहीं है। दरअसल  मैं  काफी जद्दोजहद के बाद ये विचार किया की क्यों ना  एक ऐसा मंच तैयार किया जो आरक्षण का वरोध करे इसके लिए मैंने आपको लोगो को भी सन्देश भेजा पर आपलोगों  का जिसतरह का प्रतिक्रिया मिला वह किसी भी स्थिति में  इसके पक्ष  में  नहीं थे अर्थात मंच को लेकर आज भी अंसमंजस में हूँ और गहन आत्ममंथन कर रहा हूँ क्यूंकि बिना समर्थन का कुछ भी संभव नहीं है।  जहाँ तक मैं इस मंच पर एक साथ देखना चाहते वे न सिर्फ ब्राह्मण ब्लीक पुरे सवर्ण को एक साथ ला कर एक जन आंदोलन का आगाज़ करना चाहता हूँ ताकि सरकार आरक्षण को लेकर पुनः विचार करे और इसे पूर्णत व धीरे -धीरे बंद करे नहीं तो सवर्ण सरकार को तब तक आयकर का भुगतान नहीं करे, जब तक सबको सामान्य कैटगरी का दर्जा  नहीं देती है व आरक्षण को पूरी तरह निरस्त न कर देती, तबतक यह लड़ाई जारी रहेंगे। इसके लिए सभी जाति  जो सवर्ण कैटगरी में आते है एक साथ -एक मंच पर आकर तब तक लड़ाई लड़ना होगा जब तक उनके मांग को मान नहीं ली जाती है।  यदि आपलोग वाकये इसके पक्ष में है तो आप अपना समर्थन देने का वायदा करें , जो हजार नहीं लाखो में हो इसके लिए अपने सम्पर्क में जितने सवर्ण जाति के लोग है उनको शामिल होने के लिए  प्रोत्शाहित करे और अपना समर्थन like, cooments के साथ रिप्लाय करे।  ध्यानबाद !!!


 केजरीवाल और जनता परिवार…………………… 


केजरीवाल  वाकये में आज की राजनीति के सबसे मजे हुए खिलाडी खुदको साबित करने में लगे है, जनाब जिन्होंने कांग्रेस के नीतियों के खिलाफ शंखनाद करके राजनीती के पृष्ठभूमि पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई हो लेकिन वही महान व्यक्ति आज कांग्रेस और उनके सहयोगी के साथ भविष्य की राजनीति की ब्लू प्रिंट तैयार कर रहे हो, इस तरह महत्वाकांक्षी सोच रखनेवाले आदमी से कोई सकारात्मक अपेक्षा रखना शायद ही उपयुक्त हो क्यूंकि राजनीती में छूट और अछूत को परिभाषित करना  कभी भी सहज नहीं रहा फिर भी जिनके नीति और नियति पर प्रश्न चिन्ह लगाकर खुदको जन हितेषी बताकर अपनी राजनीती के सितारे को बुलंद करते रहे है बाद में उन्ही पार्टी के साथ अनैतिक सांठ -गाँठ करके आगे की राजनीती को दशा और दिशा देने के तत्पर हो   अब उन्हें किसी भी तरह के लोगो से परहेज़ नहीं है, ऐसे लोगो से आम आदमी का भला कतई संभव नहीं परन्तु ऐसे लोगो से  देश और प्रान्त के नुकशान शुनिश्चित है इनमें किसी तरह का संकोच नहीं होनी चाहिए।

केजरीवाल  आज के राजनीती के शायद पहला मुख्यमंत्री जो बिना स्टेपनी के एक कदम भी नहीं खिसकते है। उनके यह सावधानी से जरूर सीख मिलते है कि इक-इक  ग्यारह होते है इनसे अपनी सोच और कार्य करने की क्षमता पर  काफी बल पड़ता है इसीलिए तो शोले में जय और वीरू की जोड़ी और आजके राजनीती के परिदृश्य में सिशोदिया और केजरीवाल की जोड़ी काफी हिट है।  केजरीवाल ने अब नीतीश कुमार के साथ मिलकर लालू यादव के पद चिन्ह पर चलकर भविष्य की शियासी समीकरण को नज़र में रखते हुए जाति और प्रान्त आधारित राजनीती की अंकगणित को दुरुस्त करने में लगे  है  फलस्वरूप  प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष लालू और मुलायम से अब केजरीवाल को दिक्कत नहीं और वे दिन  दूर नहीं जब केजरीवाल भ्रष्टाचार के स्तम्भ के साथ मंच साझा करते दिखे।  वैसे भी राजनीती के स्तर का कोई मापदंड तो कुछ  चिन्हित होता नहीं फिर भी राजनीतज्ञ को कुछ तो अपने विवेक का लिहाज़ रखनी चाहिए ताकि आखरी पड़ाव में जब राजनितिक जीवन का आकलन करे तो खुद ही शर्मसार अपने किये हुए पर न होना पड़े।

दरअसल में केजरीवाल को भलीभाँति ज्ञात हो गया की मुलभुत मुद्दा अब रहा नहीं, किये गए वायदे को पूरा करना कतई संभव नहीं है यद्दीप  लालू और मुलायम की राजनीती को अपनाने से ही दीर्घकाल तक सत्ता का स्वाद चखा जा सकता है।  बिहार और उत्तर प्रदेश से आये हुए भरी तादाद में लोग को ध्यान में रखकर जनता परिवार का जो गठबंधन है उनके इर्द-गिर्द घूम रहे है क्यूंकि बिहार और उत्तर प्रदेश से आये हुए लोगो का समर्थन मिलता रहे तो शायद ही  कोई सत्ता से वंचित रख  सकता , वस्तुतः बिहार के ३१ प्रतिशत और उत्तर प्रदेश के लगभग ४० प्रतिशत दिल्ली के मतदाता है जो किसी भी पार्टी को सत्ता पर काबिज़ करने के लिए काफी मन जा सकता है यदि इनको रीझां पाये तो केजरीवाल की राजनीती सितारे सदैव चमकते रहेंगे और इनको रिझाने में लालू , नितीश और मुलायम अहम रोल निभा सकते है।  इस समीकरण को ध्यान में रखकर केजरीवाल ने जनता परिवार के साथ  जाने में थोड़ी भी संकोच नहीं है।

वास्तविक में लालू, मुलायम और केजरीवाल की राजनीती में कुछ भी भिन्नता नहीं है क्यूंकि इन तीनो का राजनीती करियर का आगाज़ कांग्रेस को खात्मा के लिए होते है पर समय के साथ इन सबका नजरिया बदल जाते है और ये लोग कांग्रेस के साथ मिलकर कांग्रेस के मुलभुत विपक्षी को अपना दुश्मन मान कर एक खेमे में आकर खड़े हो जाते है हालाँकि इस तरह का अनैतिक गढ़बंधन समय के साथ- साथ  अपना स्वरुप बदलते रहते है क्यूंकि इस तरह के गठबंधन का भविष्य सुनिश्चित नहीं होती है क्यूंकी इस गठबंधन के प्रति लगाव तभी तक रहता है जबतक ये मददगार हो जैसे ही मौका निकल गया फौरन एक फिर अन्य गठबंधन का ताना -बाना बुनने लगते है।  फिलहाल  केजरीवाल और नितीश एंड कंपनी का वर्तमान में जो करीबी है भविष्य में देखना है की कबतक रह पाते है और किस हद तक रह पाते है ।