गुरुवार, 18 सितंबर 2014

*ना जाने कितने अर्शे से यह उम्मीद लिए था कि तुम आओगे कि  फिर से जिंदिगी में आएगी बहार*
*तुम आये और आकर चले गए, मुझे तो खबर नही, खैर जिंदगी आज भी कर रही उस लम्हे का इंतज़ार**

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