सोमवार, 22 सितंबर 2014



यही जीवन-सार है !!

जीवन तो धारा नहीं जो निरंतर होता रहे प्रवाह,

 अल्प आयु निर्मित जिनका निश्चित है अंत!

जीवन तो हारा नहीं अगर न चखे स्वाद सफलता के,

 नस्मष्टक होगी प्रकृति यदि जारी रखेंगे प्रयन्त !!


जीवन तो चाँद - तारा नहीं जो औरो के अस्तित्व से निखारे खुदको,

ये तो वह दीपक है जो जल-जल  कर रोशन करे अपनेको !

जीवन तो द्वारा नहीं जो तृप्ति करे अपनी सभी हवश को,

जीवन तो एक सहारा है जो प्राप्त करे अनगिनित सपनेको !!


जीवन में शर्म के लिए कोई जगह नहीं क्यूंकि,

आये है नंगावस्था में ही निर्लज्जित हो कर !

करके जतन सदेव ताकि खुदको गोरवाविंत समझंगे,

जब अंतिम विदाई हो सुसज्जित हो कर !!


पञ्चतत्व का यह काया, पंचतत्व का उधार है,

कर सम्मान उन्हिको बाकि जीवन बेकार है !

एक दिन सब अपना -अपना हिस्सा लेंगे,

तेरे पल्ले कुछ न पड़ेंगे यही जीवन-सार है !!








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