सोमवार, 22 सितंबर 2014



यही जीवन-सार है !!

जीवन तो धारा नहीं जो निरंतर होता रहे प्रवाह,

 अल्प आयु निर्मित जिनका निश्चित है अंत!

जीवन तो हारा नहीं अगर न चखे स्वाद सफलता के,

 नस्मष्टक होगी प्रकृति यदि जारी रखेंगे प्रयन्त !!


जीवन तो चाँद - तारा नहीं जो औरो के अस्तित्व से निखारे खुदको,

ये तो वह दीपक है जो जल-जल  कर रोशन करे अपनेको !

जीवन तो द्वारा नहीं जो तृप्ति करे अपनी सभी हवश को,

जीवन तो एक सहारा है जो प्राप्त करे अनगिनित सपनेको !!


जीवन में शर्म के लिए कोई जगह नहीं क्यूंकि,

आये है नंगावस्था में ही निर्लज्जित हो कर !

करके जतन सदेव ताकि खुदको गोरवाविंत समझंगे,

जब अंतिम विदाई हो सुसज्जित हो कर !!


पञ्चतत्व का यह काया, पंचतत्व का उधार है,

कर सम्मान उन्हिको बाकि जीवन बेकार है !

एक दिन सब अपना -अपना हिस्सा लेंगे,

तेरे पल्ले कुछ न पड़ेंगे यही जीवन-सार है !!








गुरुवार, 18 सितंबर 2014

*ना जाने कितने अर्शे से यह उम्मीद लिए था कि तुम आओगे कि  फिर से जिंदिगी में आएगी बहार*
*तुम आये और आकर चले गए, मुझे तो खबर नही, खैर जिंदगी आज भी कर रही उस लम्हे का इंतज़ार**

सोमवार, 8 सितंबर 2014



आने वाला विधानसभा चुनाव बिहार का टर्निंग पॉइंट……!! 


हाय रे नितीश बाबू, चूहा खाने वाले शख्श के हवाले बिहार और बिहार की जनता को करके खूब मजाक किया है। बेशक, आप अपने को सोशल इंजीनियर कहते हो पर ये जो मांझी है, जरूर आपके नैया को बीच मझधार में डुबोयेगा उस त्रासदी से न लालू और न हीं मैडम आप को किनारा लगा पाएंगे जिस कदर विकाश और शुसाशन का मसीहा बनने के खातिर उत्तावलापन आप में कूट -कूट  कर भरा था अन्तः आज वही महत्वांक्षा ने आप को नेस्तनाबूद कर दिया और जिनको वर्षो आप कट्टर विरोधी मानते थे और जिनके लिए सदेव अभद्र भाषा का प्रयोग करते रहे थे अचानक उनके गोद में जा कर बैठ गए हैं हालाँकि वे आज भी राजनितिक समझोता के तहत उनके  अपनी गोद में बिठा रखा है अन्यथा मज़बूरी नहीं होता तो उनको  दुत्कारने के आलावा  कुछ नहीं देता।  वास्तविक में ज्यादातर लोग नितीश बाबू के इस हैरतअंगेज कारनामे को देखकर सन्न है क्यूंकि बहुतो को ये समझ यह नहीं आ रहा है कि आखिर लालू और नितीश के बीच जो गठजोड़ है इसको नैतिक कैसे कहे?, जो कि न ही वैचारिक और न ही मौलिक तालमेल रखता है।  अगर इन दोनों के बीच में कुछ समानता है तो वह सिर्फ अल्प संख्यक  वोट को हासिल करने की होड़ अर्थात कांग्रेस , आरजेडी और जेदयू के बीच महा गठजोड़ मौका का तकाज़ा है जो अवसरवादी व मौकापरस्ती राजनितिक का जीता जागता  उदहारण है जो पूरी सिद्दत से हमें यह सिखाता है कि राजनीती में सब कुछ जायज़ है जहाँतक विचार अथवा सिद्धांत सिर्फ दिखावे के लिए होता और जो मौका और अवसर के नीचे दब कर दम  तोड़ देते है।
यदि कांग्रेस और आरजेडी से कुछ सीखा जाय तो केवल ये सीखना अहम होगा कि परदे के पीछे से अपने आशाएं और आकांक्षाएँ को कैसे पूरा किया जाता है?, इसीलिए ज्योंही आम चुनाव के पश्चात नितीश बाबू के सपने पर पूर्ण विराम लग गया, बिना बिलम्ब के परदे के पीछे से राजनीती करना शुरू कर दिए हालाँकि इनसे यह तो साफ़ जाहिर हो गया कि अब सीधे जनता से रूबरू होना उनके लिए सहज नहीं है क्यूंकि जनता इस कदर उनके महत्वाकांक्षी इच्छाए  को जलाकर राख कर दिए, इसी लिए तो बौखलाकर जतिन राम मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस और आरजेडी के द्वारा अतीत में किये गए राजनीति से ही प्रभावित होकर उनके नक़्शे - कदम पर आगे की राजनीती करने निश्चय किया इसी कारन से परदे के पीछे की राजनीती को अपनाया। आरजेडी ने यह कारनामा तब किये थे जब लालू को चारा घोटाला के आरोप में जेल जाना पड़ा था उस समय उन्होंने ही रावडी देवी को मुख्यमंत्री बनाकर परदे के पीछे की राजनीती की नींव रखी और कांग्रेस ने पिछले दस साल से भारत के आवाम को इसी तरह का ही राजनीती से केंद्र  के सत्ता पर काबिज़ थे मसलन मुख्या कोई और फैसला किसी और का अर्थात फ्रंट पर कुर्सी काबिज़ शख्श सिर्फ रबड़ मोहर का काम करते है, यद्दीप कांग्रेस और आरजेडी को इसके बदले बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी , नतीजन कांग्रेस आज सेंटर में लीडर ऑफ़ अप्पोज़ीशन के पद से भी मेहरूम है वही आरजेडी का कमोबेश यही हाल बिहार में रही है। अब देखना है कि शुसाशन बाबू का क्या हाल होता है ?

जनता को अभी तक समझ में नहीं आ रही है जो नितीश बाबू लालू को फूटी आँख सुहाते नहीं थे आज क्या चमत्कार हो गया जो एक -दूसरे का पूरक का काम कर रहे  है।  ये मोदी का तूफ़ान ही था जो दोनों एक साथ एक छत के नीचे लाकर खड़े कर गए या भविष्य में होने वाले परिवर्तन का आभाष मानिये जो इन दोनों को इस कदर भयवित कर गए कि सबको न चाह कर एकत्र होना पड़ रहा है। जहाँ तक मौका परस्ती के इस गठजोड़ की आयु निर्धारण करना बहुत ही कठिन है क्यूंकि लालू को लेकर सुविचार हैं यह है की वह अभी उपयुक्त समय को तलाश रहे है ताकि एक साथ कई दुश्मनो से सामना कर सके उसमें जेदयू अग्रिम पंक्ति में अंकित है जिसका आभाष सबको यथाशीघ्र  होनेवाला है। फिलहाल इतने खुद ही दुर्बल है कि अपनी सामर्थय के बढ़ोतरी में लगे हुए है और खोये हुए साख को पाने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे है।

 नितीश बाबू ने जो अपने ड्राइविंग लाइसेंश पर जतिन राम माझी को फोटो चिपका दिए है यह शायद उनकी राजनीती  जीवन के  दूसरे सबसे बड़ी भूल साबित होने वाली है क्यूंकि कम से कम ऐसे योग्य आदमी के हवाले बिहार के लोगो को करते जो अपनी जिम्मेवारी को जवाबदेही के साथ निर्वाह करते न की अनाप -सनाप बयानंबाजी करकर बिहार के जनता और बिहार को शर्मसार करने में लिप्त पाये जाते।  हद ही कर दिया जब अपने शुविचार से सबको अवगत कराया जो कि  कालाबजारियों के प्रति समर्पित था हालाँकि यह सहानभूति का मखमूल जवाब वँहा के आवाम को ही देने होगे क्यूंकि प्रान्त के मुख्या का इस तरह का विचार लोगो को हतोतसाहित करने के आलावा और कुछ नहीं हो सकता जिसका परिणाम काफी भयानक सिद्द होनेवाला है जो व्यवस्था के प्रति आस्था को झकझोरने का काम करेगा।

बरहाल बिहार में जितना राजनितिक उठल पुथल इनदिनों देखने को मिल रहे है कदाचित अतीत में कभी नहीं देखा गया होगा क्यूंकि बिहार की राजनीती का शायद आने वाला विधानसभा चुनाव टर्निंग पॉइंट साबित होने वाला हैं जो कई यथावत बरसों से आ रहे शियाशी परम्परा को अस्तित्व विहीन करने वाला है, जो न कि बिहार के भविष्य के राजनीती की बुनियाद को स्थापित करेगी ब्लीक कई ऐसे राजनीती घराने जो दशको से बिहार के राजनीती में अहम किरदार निभा रहे थे  उनके राजनीती विरासत का आगे के स्वरूप चिन्हित करेगी और यह तय करेगी कि कल बिहार विकास के कसौटी के लिए आतुर है या फिर से वही जाति और महजब के बीच  में उलझ कर विकास के पथ से बिमुख होगी। आखिकार कई अनसुलझे सवालों का जवाब देश के लोगो को बिहार के विधान सभा चुनाव के उपरांत मिलना शुनिश्चित है।