RS Jha
शनिवार, 27 जुलाई 2013
काश ! ओ दिन आये जब करू आलिगंन तुझे अपने बांहों में भर कर , और तेरी ख़ामोशी का करू दीदार
ना तुम खामोश रही , ना मेरी जुब़ा खुली, महीने दर शाल गुजर गए इंतजार में, पर कर ना सका इजहार
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