गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014


"जाने भी दो यार.....!"


जाने भी दो यार.....
झूठा लगे तेरा जयजयकार
वही डफली , वही राग
रोटी पर न साग,
चूल्हा में न आग
फिर भी, भाग मिल्खा भाग
जाने भी दो यार.....

गंगा मैली, यमुना मैली
सरस्वती बेचारी पहले से अकेली
दिखतां हैं विकास
फिर भी सब हैं हताश
कोयला उगले सोना
फिर काहे को रोना
सोना लेकर भागा चोर
लूट मचा हैं चारुं ओर
जाने भी दो यार.....

आचार-विचार का अब मोल नहीं 
सत्ता के बाज़ार में इमान का तोल नहीं
लगाते हो बोली हमारे अधिकार के
लेकर मत हमसे पुँचकार के
नारे के सहारे क्या खूब अलख जगाये
ताना-बाना में मेरे सुध -बुध को भुलाये
सत्ता के लार में फिसल गए सब वायदे 
हम तो ठगे गए खुद ले गए सब फायदे
सत्ता जहर हैं या नशा जो भी, पर किया खूब असर 
नीलकंठ का दर्श नहीं , पी रहे फिर क्यूँ  सब जहर 
जाने भी दो यार.....


लाछन और वाचन हो गया सत्ता का खेल
करनी और कथनी में न कोई अब मेल
मेरे ही पसीना हैं तेरे इस सोंच में
मेरे ही गर्दन हैं दबा हैं तेरे चोंच में
आंखमूंद कर हमने किया बरसो भरोषा
हमारे सब्र को मिला सिर्फ धोखा ही धोखा
क्या खाश हुए कि खाशियत से  ही काम किया 
हमें आम बनाकर, गुठलियों का भी दाम लिया 
करले लाख प्रयन्त पर अब नहीं
इस आरजकता पर यंकी हरगिज़ नहीं
बहुत कुछ तय होना हैं अबकी बार 
होगी जनता जनार्दन की सरकार
जाने भी दो यार.....










कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें