बुधवार, 12 मार्च 2014


  वास्तविक में केजरीवाल सियाशी विश्वामित्र तो नहीं ?

केजरीवाल साहेब के बारे में लिखता आ रहा हु और शायद लिखता रहूँगा क्यूंकि महत्तवाकांक्षी और परिवारवाद राजीनीति और अराजक व्यवस्थाके खिलाफ मैं सदेव हूँ और इसके खिलाफ लड़ता रहूँगा यही कारण हैं कि मैं कभी भी इस तरह के लोगों पर विस्वास नहीं करता जो कहता कुछ और है और करता कुछ और है। अन्तः ब्लॉग के माध्यम से हम अपने देश के लोगों को आगाह करने कि कौशिश करता हूँ कि आप दिखावे पर मत जाओ ब्लिक योग्य उम्मीदवार को जिताओ जो प्रतिभा और निस्ठा की धनि हो न कि उन्हे जोचोचलेबाज़ी और झूठी ख्याली पुलाउ बनाने में महारथ हासिल कर रखे हो। हालाँकि मैं अपने पुराने ब्लॉग में मीडिया को भी आड़े हाथ लिया था जिस कदर पत्रकारिता के नाम पर गोरख धंधे का बाज़ार सजा है इसीका नतीजा है केजरीवाल का क्लिप का आना जो मीडिया फिक्सिंग का कलई  खोलता है। इसके उजागर होने के बाद मीडिया और केजरीवाल  जहाँ अपने मुहं पर ताला लगा लिए है वही विरोधी भी टिका -टिप्प्णी करके खूब लुप्त उठा रहे है क्यूंकि अभी तक केजरीवाल यही कहते आये थे कि मोदी के हवा के पीछे मीडिया का हाथ है जिन्हे मोदी ने खरीद लिया है पर केजरीवाल के हाल यह क्लिप उनके और मीडिया कर्मी के बीच के रिस्ते को न सिर्फ उजागर करते है ब्लिक पैड न्यूज़ के तरफ भी इसारे करते है। अब केजरीवाल और मीडिया के सदर्भ में किसी के भी जहन में कोई असमंजसता नहीं दिखनी चाहिये फिर मेरे पुराने ब्लॉग पढने से मीडिया और केजरीवाल दोनों के संदर्भ में बहुत कुछ पढ़ने को मिलेगा जिसे रीडर अपनी जानकारी के लिए जरुर पढ़े और उसका आकलन करे कि उसमे जो भी विचार प्रस्तुत किये गए है, आहिस्ता आहिस्ता करके सब सच साबित हो रहे है या नहीं। दरशल में अभी तक के जो टिप्प्णी मुझे प्राप्त हुए उससे थोड़ी ख़ुशी और थोडा ग़म का अहसास हुआ क्यूंकि इस विचार को लेकर ज्यादातर ने सहमत दिखाए फिर भी कई ऐसे भी है जिन्होंने अपनी नाराजगी का भी इज़हार किये है। 

बरहाल मेरा प्रयास जारी है फिर भी कई लोगों ने मुझको लेकर ये धारणा बना कर रखे है कि मैं भाजपा और मोदी के खिलाफ नहीं लिखता हूँ हालाँकि कारण तो कई है फिर भी इस समय यही बताऊंगा कि फिलहाल मौका का ताक है जैसे ही कुछ शाक्ष्य सामने आएगा जरुर लिखूंगा। मोदी हो या केजरीवाल देश और जनता से बढ़कर कोई नहीं है। दरशल केजरीवाल के खिलाफ लिखने का मतलब सिर्फ एक है कि केजरीवाल ने लोगों से एक ही वायदा करके राजनीती के जमीं पर अपनी पार्टी आआपा का बीज बोये थे कि वे सबसे अलग है और  कभी भी सत्ता के लार से लबालब हो कर भ्रष्टाचार को लेकर जो उनके रवैया है उससे कभी भी फिसलेंगे नहीं पर काश !,  ज्यादा दिन तक अपने किये हुए वायदे पर कायम रहतें, आहिस्ता -आहिस्ता कर फिसलते गए कि अब तो केजरीवाल का वह रूप ही अदृश्य हो गया जिसे लोग देखते थे अब तो सिर्फ सत्ता के लार ही नज़र आ रहे है। वास्तविक में जिन्होंने शहीद के सहादत को भी अपनी सियाशी खेल का हिस्सा बना दिया और फायदे के लिए भरपूर इसका इस्तेमाल किया, क्या इस तरह के शख्श देश के लोगों का हित ख्याल रख सकते है? आपको ही इसका आकलन करना होगा क्यूंकि बहुत ही गम्भीर मसला है
केजरीवाल को लेकर जब मैंने घोर आत्मा मंथन करना शुरू किया और अत्यंत मत्था -पच्ची के पश्चात इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि आज के केजरीवाल और सत्ययुग के विश्वरथ अथवा विश्वामित्र में कुछ हद तक काफी समानता है, हालाँकि विश्वामित्र के जीवन का पहला अध्याय और केजरीवाल का जीवन दूसरा अध्याय आपस में मेल खाते दिखतें हैं पर आखिरकार कितने मेल और समानता केजरीवाल और विश्वामित्र के बीच में है, इसको किन मानदंड में मापा जाता है, और इसके लिए किस तरह का मात्रक का उपयोग किया जा सकता? इसको यथाशीघ्र तो चिंहित कदाचित नहीं की जा सकती है क्यूंकि ये तो अभी भविष्य के कोख में हैं और इतिहासकार को ही पूर्ण आकलन करना होगा  केजरीवाल के जीवन का लेखा जोखा पर, दोनों के हट, जिद्द और महत्तवाकांक्षी एक जैसे ही दिखतें है व भिन्न है । इसके वाबजूद विश्वामित्र के जीवन का पहला अध्याय अहंकार और महत्तवाकांक्षी के प्रतिक रहे हो पर बाद के अध्याय प्ररेणा का स्त्रोत है जबकि केजरीवाल का जीवन का पहला अध्याय के ऊपर लाछन लगाना उचित नहीं होगा पर बाद का हिस्सा को टटोलने पर सिर्फ और सिर्फ महत्तवाकांक्षी इच्छाएं दिखेंगे हालाँकि इनके जीवन के पहले हिस्सा से काफी कुछ सिखने को मिलेंगे जिसे कभी नकार नहीं सकते।

सत्ययुग में एक विश्वरथ, जो बाद में चलकर विश्वामित्र के नाम से प्रसिद्ध हुए जिन्होंने वशिष्ट मुन्नी से कामधेनु (नन्दिनी) गाय हासिल करने के लिए कई बार युद्ध किये पर फिर भी गाय हासिल कर पाने में असमर्थ रहे और बार -बार वशिष्ट मुन्नी से पराजित होकर जब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि ब्रह्म ऋषि को पराजित करना उनके बस की बात नहीं है, यदि वशिष्ट मुन्नी को पराजित करना हैं तो पहले इसके लिए ब्रह्म ऋषि बनना होगा। इसी कारण से ब्रह्म ऋषि बनने के लिए दृग संकल्प का लेना जो एक तरफ उनके हट का प्रतिक है जबकि ब्रह्म ऋषि बनने का प्रयास सिर्फ उनके महत्वकांक्षी इच्छाये को ही समप्रित है, त्रिशंकु को संदेह देवलोक में भेजने का असहज प्रयास करना,  ये उनके अंह का प्रतिक है जिस कार्यकलाप के माध्यम से प्रकति को चुनौती देना और तपस्या करते हुए इन्द्र के द्वारा भेजी गई मेनका के साथ संसर्ग के उपरांत एक कन्या का जन्म देना, जिसे बाद में कण्व ऋषि ने पाला और जिसका नाम शकुन्तला पड़ा। इसी शकुन्तला से कण्व के आश्रम में राजा दुष्यन्त ने गन्धर्व विवाह किया। जिससे भरत नाम का वीरपुत्र पैदा हुआ, बाद में भरत के नाम पर ही भारत रखा गया, राजा हरिश्चन्द्र को सत्यवादी मानने को तैयार नहीं होना अपने हट और अहंकार के कारण राजा हरिश्चन्द्र से कठोर परीक्षा लेना और उस परीक्षा के दौरान अत्यंत यातनाएं देना और जब राजा हरिश्चन्द्र को सत्य के मार्ग से अडिग नहीं कर पाये, आखिकार राजा हरिश्चन्द्र के सत्यता के समाने झुकना। हालाँकि त्रेता में उन्ही वशिष्ट मुन्नी के शिष्य और राजा दशरथ के पुत्र ( राम और लक्ष्मण) को अपने तप और यज्ञ में विघ्न डालने वाले राक्षश के वद्ध करने के लिए लेकर अपने आश्रम में लेकर जाना, राम और लक्ष्मण के द्वारा राक्षश का वद्ध करवाना। 

आखिरकार विश्वामित्र अपने भीतर बैठे हुए  अहंकार का विरसजन और त्याग के चरम उत्कर्ष की प्रतिष्ठा को पाने के लिए सर्वस्व लगा देने की दृढ़ भावना विश्वामित्र के चरित्र से अनुभव की जा सकती है। केजरीवाल के चरित्र और विश्वामित्र के चरित्र में ज्यादा कुछ तो समानता अभी तक देखे नहीं गए फिर भी दोनों के चरित्र को तुलात्मक दृष्टिकोण से देखा जाय तो बेशक उन दोनों के सोंच और अंहकार में बहुत ज्यादा फ़र्क़ नहीं मिलेंगे  पर वास्तविक विश्वामित्र अहंकारी चरित्र का प्रमाण उनके जीवन के प्रथम अध्याय में ही देखे जा सकते अंतोगतवा अपने घोर तप और साधना से ब्रह्म ऋषि का ख्याति प्राप्त कर ही लिया।

 केजरीवाल और विश्वामित्र  के बीच क्या -क्या समानताएं है उस पर एक नज़र ;-
  • केजरीवाल को खाश आदमी रहते हुए भी आम आदमी का टोपी पहनना सिर्फ इसके लिए कि सत्ता को हासिल की जाय।
          विश्वामित्र को राजा से ऋषि का बनना सिर्फ इसके लिए कि किसी तरह नन्दि गाय को वशिष्ट मुन्नी से    हासिल की जाय।
  • केजरीवाल को सरकार में आना और जनलोकपाल को असंवैधानिक तरीके पास करने की कोशिश करना और जो तत्कालीन व्यवस्था को चुनैती देना।
         उसीप्रकार , जैसे कि विश्वामित्र  ने त्रिशंकु को संदेह देवलोक भेजना और प्रकृति को चुनौती देना। 
  • केजरीवाल का पहले तो कहना कि सत्ता का कोई लोभ नहीं और न ही सत्ता के सुख सुविधाएं के लिए  लालायित है पर अवसर मिलते एक -एक करके सत्ता के सभी सुख सुविधाएँ को प्राप्त  करना और अपने को और भी सत्ता में ताक़तवर बनाने के लिए अचानक दिल्ली के सरकार से इस्तीफा देना ।   
     विश्वामित्र भी अपने गृहस्थ जीवन को त्याग कर वैराग्य जीवन को अपनाये पर मेनका के रूप से                समोहित व काम भावना के ऊपर पूर्णत नियत्रण नहीं होने के कारण  फिरसे मेनका से शादी करके गृहस्थ जीवन में प्रवेश करना और शकुन्तला को जन्म देकर पुनः तपस्या पर बैठ जाना जो उनके पिता के जिम्मेवारी से भागने का प्रतिक हैं जबकि वैराग्य जीवन पहले भी वे गृहस्थ जीवन थे और सबकुछ छोड़कर ही वैराग्य जीवन में कदम रखे थे जो उनके अंदर जवाब देहि कमी का बोद्ध करता है । 

  • केजरीवाल  को दूसरे के ऊपर सवालों का बौछार करना और दूसरे के निस्ठा के ऊपर प्रश्न चिन्ह लगाना जबकि खुदको ईमानदार और क्रमनिस्ठ बतलाना । 
       विश्वामित्र का उसी हट का प्रतिक है कि सबने तो मान लिया था कि राजा हरिश्चंद्र वाकये में सत्यवादी हैं  पर वह इस सत्य को तबतक नहीं मानें जब तक राजा के सत्य के सामने ऋषिवर नतमस्तक न हुए। 
  •  बरहाल केजरीवाल को देखना है कि जिन राजनीती पार्टी के विरुद्ध फिलहाल खड़े है, क्या कल जाकर उन्ही के लोगों के मदद से अपनी इच्छाये और उद्देश्य को पूरा कर पाते है अन्यथा अपने सिद्धांत पर अडिग रहते है?
          विश्वामित्र ने भी वशिष्ट मुन्नी के विरुद्ध संघर्ष करते रहे जबकि बाद में उनके शिष्य श्रीराम और लक्ष्मण के मदद से ही यज्ञ और साधना को सिद्ध कर पाये।
केजरीवाल को अब ये भी साबित करना होगा कि उन्होंने जो आम आदमी की टोपी पहन रखे ब्लिक वे वास्तविक में आम आदमी ही है न कि और को टोपी पहनाने के लिए आम आदमी बने है।  आनेवाले दिनों  में अपनी सियाशी परिवेश में  केजरीवाल अपने अंह और महत्तवाकांक्षी सोंच व इच्छाएं को तिलांजलि देकर देश और देश के लोगों के बारे में सोचेते है तो शायद ये उपरोक्त आलेख में उनके जीवन के दूसरे अध्याय में कुछ  कहे गए है उन बातों  में  कुछ  नए पंक्ति को जोड़ने जाने का गुंजाईश है जो केजरीवाल के व्यक्तित्व् के लिए अहम् हो सकते है.…………… ।
हालाँकि सबसे महत्वपूर्ण यह  है कि आप लोगों को इस आलेख लो लेकर क्या धारणा है , उनसे  जरुर अवगत करवाए।



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