सोमवार, 3 मार्च 2014

क्या होगा नितीश कुमार का ?

मोदी के नमो - नमो और केजरीवाल के कजरी नाच से लोट पोत होकर आवाम हो या मीडिया  राजनीती के अन्य  दिग्गज महारथी को भूलते जा रहे हैं कदाचित लोगों का इसी तरह के रवैया इन महारथीयों के लिए रहा तो  इस चुनाव के बाद राजनीती के दिग्गज महारथी से सारथी के भूमिका में नज़र आयेंगे।  वेसे तो इनके सूचि बड़ी लम्बी -चौड़ी है उन नामों को न सरलता से गिनाये जा सकते है और न ही सुगमता से इनके व्यख्यान किये जा सकते है फिर भी कुछ चर्चित नामों को लेकर इन दिनों गामके नुक्कड़ से लेकर देश की राजधानी में भी चर्चा खूब है एक तरफ लालू जो अपनी गवाएं हुए साख को वापस लेन के लिए पुरजोड़ कोशिश कर रहे हैं वही दूसरी तरफ मुलायम सेफई महोत्सव के उपरांत तीसरे गठबंधन के लिए दिन रात एक कर रहे है। ममता को आखिरकार अन्ना का साथ मिल चूका है इसीलिए इन नये साथी पाकर गदगद होकर जोर सोर से प्रचार- प्रसार  किया  जा रहा है ताकि अन्ना के साफ़ सुथरी छवि के बदोलत आम चुनाव में अपेक्षा से अत्यधिक कामयाबी  मिल सके।

इन दिनों यदि राजीनीति परिवेश में सबसे चौकाने वाली बात है तो बस थर्ड फ्रंट का पुनः अस्तित्व में आना  हालाँकि जो इनके पक्ष में अभी तक देखे गए या तो इनदिनों सियाशी गलियों में उनकी पूछ नहीं अथवा वे देश के दो बड़े राष्टीय दलों व गठबंधन से खुदको दुरी बनाने को मज़बूर है, यद्दिप ये सभी दल अतीत में देश के इन्ही दो बड़े दलों के गठबंधन के हिस्से रह चुके है अथवा बाहर से इनके गठबंधन के सरकार को समर्थन देते आये हैं। वास्तविक में थर्ड फ्रंट की कवायद यदि वाम दल करते है तो कुछ हद तक इसको वाजिव कहा सकता है पर जिस कदर सपा, जेडीयू , बीजेडी जैसे क्षेत्रिये पार्टी  इसके लिए उतसाहित है इनसे तो यही कयास लगायी जा सकती है कि इन पार्टियों के आलाकमान के जहन में कंही न कंही प्रधामंत्री बनने की उम्मीद दिख रही है जो इन बड़े राष्टीय दल के साथ कभी साकार नहीं हो सकते। उम्मीद बेशक़ जरा सी हो जो ढूंढने  पर भी मुश्किल से ही मिल पाये मसलन न के बराबर ही पर कोशिश पूरी निस्ठा से की जा रही है।

इन जरा सी उम्मीद से यदि सबसे ज्यादा अगर कोई लबालब है तो नितीश बाबू  है।  वह तो शायद २०१३ से पहले  और २०१३ के अंत तक पूर्ण रूप से निश्चिंत थे कि अबकी बार दिल्ली की गद्दी पर आसीन होने की बारह आना मौका है बाकि चार आना मुलयम और वाम दलों के मेहरबानी से मिल ही जायेगा इस उम्मीद का सिलसिला पिछले एक शाल से अपने मन में बिठा रखे थे। काश, शायद चुनाव तक तो यही सब चलता यदि हाल में किये गए मीडिया द्वारा सर्वे चौकाने वाले नहीं होते इसलिए बिना विलम्ब के पुरानी गठबंधन को तोड़ नये गठबंधन की स्वरुप तैयार करने लगे। दरशल में पहले नितीश बाबू अस्स्वत थे कि लालू का दिन तो अब गए जबकि कांग्रेस विकल्प के आभाव में घूम फिर कर उनके पास ही आएगी उस परिस्थिति में कांग्रेस चाह  कर भी नहीं मना  कर सकती हैं तब नितीश बाबू बहुत कुछ कांग्रेस से मना लेती व मानने के लिए राज़ी कर लेते है पर अफ्शोष कांग्रेस ने घास ही नहीं डाली और हार थक के नितीश बाबू के पास तीसरे विकल्प को छोड़ कर कोई और विकल्प ही नहीं बचें थे।

 " अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना" ये जो कहावत है  जिसको कोई आज के परिदृश्य में चरित्रार्थ करता है तो वह नितीश बाबू जो खुदको शुशाशन बाबू कहने और सुनाने में आनंद से प्रफुलित होते है  पर भाजपा से गठबंधन जैसे तोड़ लिया मानों  शुशाशन को मार्ग छोड़कर कुशाशन के मार्ग पर दौड़ने लगे।  जो बिहार पिछले आठ शाल में तरक्की के कई मिशाल पेश किये , बड़ी तेजी विकास के पथ पर अग्रसर बिहार का  पुरे देश में गुणगाण किये जा रहे थे पर वे बीते कल हो गया था जबकि  हाल -फिलहाल  बिहार का चर्चा पटना में बम विस्फोट के लिए तो कभी नालंदा के दंगे के होने लगे। नितीश बाबू  खुदको  मोदी के समकक्ष के नेता समझते थे अचानक देश के राजनीती से प्रायः  ग़ुम हो गए।  अब तो नितीश बाबू बिहार में भी खुद को नहीं ढूंढ पा रहे और लालू के हाल पर तरस खाने वाले नितीश बाबू के लिए भी वे दिन दूर नहीं जब लालू से फिसड्डी  साबित होने वाले है क्यूंकि  आम चुनाव के बारे में जो बिहार के लोगों का रुझान देखने को मिल रहें है उसमे जेडीयू  को दहाई अंक भी नहीं मिल पा रहे। बरहाल आम चुनाव में नितीश बाबू को  मटिया  पलीत होना तय है जबकि अगले शाल बिहार में विधान सभा चुनाव होना हैं जिसे नितीश बाबू अकेले दम पर हरगिज़ फ़तेह नहीं कर सकते है।
नितीश बाबू ने अपनी महत्वकांक्षी आकांक्षा के लिए १७ शाल के गठबंधन को तोड़ने में तनिक भी देर नहीं लगाये ताकि अपना सपना को संजोये रखे क्यूंकि गठबंधन में रहकर इनको इस तरह के सपने देखना कतई  मुनासिब नहीं थे पर जिस कदर बिहार की  राजनीती  समीकरण बनता दिख रहा हैं उसमें नितीश बाबू को अपनी जमाये हुए साख को बचा पाना भी सबसे बड़ी चुनौती होगी क्यूंकि आरजद और कांग्रेस की गठबंधन पारूप लगभग तैयार किये जा रहे है वही एलजेपी और बीजेपी का ओपचारिक तोर पर गठबंधन हो गए है। आखिरकार नितीश बाबू जिस फ्रंट के लिए अग्रसर दिख रहे है वे बिहार के राजनीती में कुछ खास करते  कभी नही देखे गए है और उनके दमखम से नितीश बाबू अगर चुनावी नैया पर लगाने को सोंच रहे तो उनके इस सोंच से जनता परे है जबकि नितीश बाबू  के लिए आगमी आम चुनाव अहम् होनेवाले है जो इनके अगले शाल के विधान सभा चुनाव का भी रुझानों को पेश करेगी।  अभी देखना बाकि है कि नितीश बाबू का जादू अब भी बरक़रार है बिहार के लोगों के बीच अथवा उनका जादू  उतर चूका है।


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