गुरुवार, 29 मई 2014





 चुनाव परिणाम का साइड इफ़ेक्ट जारी है …!!





मोदी ने ममता और जयललिता को संकेत दे दिया है कि सुधर जाओ वर्ना देश की राजनीती में शून्य से ज्यादा अहमियत नहीं मिलनेवाली है इसीलिए तो उनकी ख़ुशीका परवाह किये बिना बंगला देश के प्रधानमंत्री और श्रीलंका के राष्ट्रपति को सादर आमंत्रित किये और सम्भावना है कि वे खुद व उनके प्रतिनिधि सपथ समारोह में अपनी उपस्थिति दर्ज करेंगे। बेचारी ममता और जयललिता अपने -अपने प्रान्त में जीत का परचम तो लहराया पर दिल्ली के गलियों में फिर भी कोई उन्हें भाव देने को तैयार नहीं। हालाँकि ममता को यह भलीभांति ज्ञात है कि दिल्ली में उनकी लोकप्रियता के नाम पर ५०० लोग भी इकट्ठा नहीं सकते और ऐसा ही हुआ था जब उन्होंने आम चुनाव से पहले अपनी ताकत का प्रदर्शन करने की गुस्ताखी की थी। बरहाल दिल्ली में मोदीजी के ताजपोशी के तैयारी जोरो पर है।  ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------


कांग्रेस के बड़े -बड़े पहलवान आम चुनाव के दंगल में चित्त हो गए है। एक तरफ सोनिया गांधी को कुछ सूझ नहीं रहा हालाँकि राहुल गांधी अपनी काबलियत का दिलाशा देकर अपनी माँ को सान्तवना देने का पुरजोर कोशिश में लगे है तदोपरांत माँ को उनके क्षमता पर यकीन नहीं हो रहा है और अन्य विकल्प को लेकर आत्मचिन्तन कर रही है। इन्ही गहमा -गहमी के बीच कई बकरे तैयार किये जा रहे है जो राहुल गांधी के दीर्घायु और पुनः खोये हुए ताकत को सृजन के खातिर बलि दिए जाना है।  फिलहाल कांग्रेस कोर कमिटी ने आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हारका का घड़ा राहुल गांधी के बदले सबके सिरे फोरने पर हामी भर दिए है।  ऐसे में बड़े- बड़े बड़बोले को चुप करने के लिए रणनीति बनायीं जा रही है जबकि राहुल गांधी के नए सिपाह - सलाहकार के भर्ती के लिए यथाशीघ्र बिज्ञापन दिए जायेंगे क्यूंकि दिग्गी राजा  इन दिनों कंही और व्यस्त है जबकि बाकि चुनाव में जमानत जब्त करवा कर काफी हतोत्साहहित है इसीलिए ज्यादातर ने तो इंडोनेशिया और शेष स्विट्ज़रलैंड जाकर गहन सोच -विचार करने का मन बना लिए  है।  ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

आम चुनाव के पश्चात यदि सबसे ज्यादा नुकसान किसी भी व्यक्ति को उठाना पड़ा है तो वह नितीश बाबू जो पिछले महीने तक प्रधानमंत्री बनने के हसींन सपने देखा करते थे पर जब आँखे खुली तो सच्चाई से रूबरू होना ही पड़ा नतीजन प्रधानमंत्री बनने का सपना सपना ही रह गया जबकि हकीकत में मुख्यमंत्री के भी कुर्सी खिसक गई। बेचारे नितीश बाबू कल तो उनके गाल फूल जाता था अगर कोई किसी और व्यक्ति के तारीफ उनके सामने करते पर आज जो अपने वे भी इन्हे ही कोसतें है पर क्या करे?, सब कुछ बदल चूका है हालात भी और बात भी। वक्त का मारा हुआ सुशाशन बाबू उनके ही दामन थामे जिनसे २० साल पहले नैतिकता और वैचारिक टकराव के चलते अलग होकर समता पार्टी का गठन किये थे। जॉर्ज फर्नाडीज के आत्मा भी नितीश के करतूत पर जरूर खिन्न होंगे क्यूंकि उस विपरीत परिस्थिति में अकेला वही थे जो नितीश बाबू के साथ थे पर जब उनको नहीं बक्शा तो औरो को उनसे उम्मींद करना ही मूर्खता होगा। हालाँकि मांझी के सहारे उन्होंने अपनी नैया पार लगाने को सोच रहे है मगर मांझी के लिए भी इतना आसान नहीं है क्यूंकि एक नाव में लालू और नितीश दो सौतन ही मानों सवार है जिनकी मज़बूरी है कि किसी भी हालत में इस किनारे से उस किनारे जाना है अन्यथा अभी तक कमाए हुए रुशुख का मटिया पालित होना सुनिश्चित है जिसे ये दोनों इतने आसानी हरगिज़ नहीं जाने दें सकते है। हालाँकि अपने रुशुख को बचाने के चलते दोनों एक ही नाव पर तो सवार हो गए है लेकिन अंदेशा का गुंजाईश है कि कही मझधार में ये दोनों फिर से उलझ गए तो नाव का डूबना तय मानों फिर मांझी तमाशबीन बनके देखतें रह जायेंगे और लाख प्रयन्त करने के वाबजूद भी बचा नहीं पाएंगे। ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------


 अब एक नज़र उत्तर प्रदेश पर जँहा भी राजनीती के खूब उथल -पुथल है। आज़म खान ने तो वेचारे बेजुबान होकर चुप्पी साध लिए है अब तो कई दिनसे कुछ कहने के हिमाकत नहीं किये है, उधर अबु आजमी तो इन दिनों सहमे-सहमे हुए है जबसे मिडिया ने उनके पुराने दोस्तों में से के एक का जिक्र छेड़ा है जो एक इंडियन मुजाहिद्दीन के आंतकी है नाम है फैजान, जिसको इस साल फरवरी में दुबई में गिरफ्तार किया गया था और इनदिनों यहांके खुफिआ एजेंसी के हिरासत में है। मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को कुछ खरी -खोटी सुनाकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बरक़रार रखा यद्दीप जितने भी जिला और ब्लॉक स्तर के पदाधिकारी थे उनको नहीं बक्श पाये हालाँकि ३६ ऐसे सर्वमान्य लोगोंको भी लालबत्ती उतारने के लिए फरमान जारी कर गए, अब देखना है कि उनके फरमान को ज्यादा तज़्ज़्वो उनके ही गणमान्य नेताओं देतें है अथवा अन्दरन्दाज करके खारिज करते है। ख़ुशी की बात यह रही कि आम चुनाव में बेशक सपा को पांच सीट ही मिल पाये हो पर मुलायम सिंह यादव के परिवारका का उत्तर प्रदेश के राजनीती में दबदबा अभी भी कायम है नतीजन पांच सीट ही सही पर परिवार के कोई भी सदस्य हार की मुंह नहीं खायी। 

दरअसल में हाल के आम चुनाव में ने तो अनेकोअनेक दिग्गज और दल ने अपनी साख और धाख गवां चुके है पर बसपा का तो जो हाल हुए है शायद मायावती कभी सपने में भी नहीं सोची होगी। सुफरा साफ़ हो गया यानि खाता ही नहीं खोल पाये जबकि चुनाव परिणाम के पूर्व कयास ये लगाये जा रहे थे की यदि किसी भी गठबंधन को न बहुमत मिलने के आसार में यदि थर्ड फ्रंट सरकार बनाने का दावा पेश करता है तो प्रधानमंत्री के रेस में बहन मायावती भी सुमार है पर इस तरह का परिणाम होगा ये किसी ने भी सोचा नहीं। मायावती इनदिनों अपनी खीश कांग्रेस पर निकाल रही है जो किसी भी दशा में तर्कसंगत नहीं माना जा सकता है। वास्तविक में धर्म निरपेक्ष के आध में सियाशी मेवा सब खाने के लिए लार टपका रहे थे पर जनता ने उनके मनसूबे पर पानी फेर दिए तो एक दूसरे पर आरोप -प्रत्यारोप लगाने पर आमादा हो गए। 
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 आआपा के संयोजक माननीय केजरीवाल हाल के आम चुनाव में पराजित होकर इस कदर सर्मसार हो गए है कि लोगों से आँख मिलाने से बेहतर जेल में ही रहना पसंद कर रहे है अन्यथा उनको ये पता होना चाहिए कि देश में कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है ऐसे में वे खुदको क्यों कानून से ऊपर समझ रहे है? इसके ऊपर बुद्धजीवियों का आत्मंमंथन जारी है और अतिशीघ्र केजरीवाल के मंसूबा जगजाहिर होंगे पर लोगों ने उनका सुनना बंद कर दिए इसीका नतीजा है जिन केजरीवाल के लिए ज्यादातर दिल्ली वासी सड़क पर उतर जाते थे आज उनके अपील को अनसुना कर रहे है। वाकये में केजरीवाल के अच्छे दिन गए लोगो को उनका मौकापरस्ती ही दीखता है इसीलिए लाख प्रयन्त के वाबजूद लोग उनके झांसे में नहीं आ रहे है। केजरीवाल वास्तविक में जनाधार और लोकप्रियता पर खुद ही ग्रहण लगा गए।  दिल्ली के लोगों ने उनको अपने आँखे और दिल में बैठने का जगह दिए पर लोगों को क्या पता था की दरअसल में केजरीवाल को सिर्फ जुबाँ पर बैठने की आदत है जो उन्हें दिल्ली में रहकर संभव होने वाले नहीं है इसीलिए तो अचानक दिल्ली के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देकर वाराणसी के तरफ कूच कर गए मोदी से दो-दो हाथ करने के लिए पर जितने उत्साह के साथ वाराणसी गए थे जब वापस आये थे उतने ही मायूस दिखे क्यूंकि जो भी था सब खो चुके थे हार-थक के उन्होंने गहन विचार करके दिल्ली में पुनः सरकार बनाने के लिए प्रयास में जुट गए पर कांग्रेस ने इस बार समर्थन देने से मना कर दी। आखिरकार कांग्रेस के सब कुछ पहले ही लूट गई और फिलहाल खोने के लिए कुछ भी नहीं है ऐसे में केजरीवाल को क्यों समर्थन दे?, जिनके बदौलत ही दिल्ली में अर्श से फर्श पर पंहुच गई। केजरीवाल को नितिन गडकरी के ऊपर अथवा अन्य नेता के ऊपर जो भ्रष्टाचार के आरोप लगाये थे इस तरह प्रतिकूल मौहाल में भारी पड़ रहा है क्यूंकि कसी भी आरोप को साबित करने के लिए सबूत की जरुरत होती जो केजरीवाल ने न्यायलाय के समक्ष नहीं रख सके, ऐसे में निजी बॉन्ड भरने के लिए न्याय उनको आदेश दिए पर वे इसके पक्ष में नहीं दिखें क्यूंकि उनको ये लगता है कि उन्होने आरोप लगाकर कोई गलती नहीं किये इसीलिए निजी बॉन्ड भरने का मतलब होता है कि उनका दोष साबित होना, यह केजरीवाल साहेब का मानना है। यदि केजरीवाल ने बिना सबुत के किसी के ऊपर आरोप लगाये है तो वास्तव में वे दोषी फिर भी अगर नहीं मान रहे है तो इसका एक ही मतलब होता है कि फिरसे लोगो का ध्यान अपने ऊपर आकर्षित करने के लिए निर्थक का ड्रामा कर रहे है जो लोगो को हज़म नहीं हो पा रहा है। यद्दीप हाल में मनीष तिवारी माफ़ी मांग चुके है क्यूंकि उन्होंने भी बिना सबुत के उन्ही व्यक्ति के ऊपर इसी तरह के आरोप लगाये थे जैसा कि  केजरीवाल साहेब लगा चुके है फिलहाल मनीष तिवारी के माफ़ी के बाद वह मामला उसी वक्त खत्म कर दिए गए। ऐसे में केजरीवाल क्यों नहीं संयम काम ले रहे और बिना तिल के तार बनाये हुए मामला ख़त्म करना चाहते है? 
सचमुच में केजरीवाल को भरम हो चूका है कि इस तरह के कारनामे को अंजाम देने से मिडिया का मुफ्त का पब्लिसिटी मिलेंगी जो दिल्ली के आगामी के विधानसभा के चुनाव में कारगर साबित होगा। बरहाल दिल्ली के आम आदमी बड़ी ही दिलचस्पी केजरीवाल के नौटंकी का लुप्त उठा रहे और बड़े ही उत्सुक से उनके आगे के खेल का इंतज़ार कर रहे है।






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