शुक्रवार, 4 सितंबर 2015


घर की मुर्गी दाल बराबर..........?

"घर की मुर्गी दाल बराबर" वास्तविक में इन दिनों यह कहावत का तातपर्य रह नहीं गया क्यूंकि इनदिनों लोग मुर्गी नहीं दाल के लिए तरस रहे है।  मंहगाई के मार में प्रायः अधिकतर लोगो के घर इनदिनों दाल नहीं गलते इसीलिए तो दाल और मुर्गी के मूल्यों में तुलना करेंगे तो पाएंगे कि मुर्गी खानेवालों के लिए मुर्गी सस्ती हो गयी और दाल मंहगा।  सरकार क्या करे? जमाखोरों ने जो लागत लगाये थे चुनाव के दौरान उस ऐवज़ में मुनाफा तो वसूलेंगे ही, क्यूंकि बिना फायदा का तो बाप भी बेटा का भला नहीं करते फिर चुनाव में करोडो -अरबो का खर्च के लिए पार्टी फण्ड में जो चंदे दिया उसके बदले में कुछ फायदा तो बनता ही है।
फिलहाल मुर्गी खाने वाले भी खुश नहीं है, क्यूंकि क्या करे, मुर्गी से ज्यादा मसाला भारी है नहीं समझे तो समझने  कोशिश कीजिये, फिर भी नहीं समझे , चलो  बता ही  देते है, " दो रुपये की मुर्गी नौ रुपये का मसाला" ऐसे में कौन मुर्गी खाए?, जनाब, बिना प्याज के सब्जी का स्वाद नहीं लगता फिर बिना प्याज का मुर्गी का स्वाद क्या होगा?, बरहाल मुर्गी भी नहीं खा सकते फिर क्या करेंगे नमक रोटी खा कर गुजारा कर लेंगे लेकिन बिना प्याज के नमक रोटी भी गले से नीचे उतरने में शरमाते हालाँकि चीनी के मिठांस का  मजा लिया जा सकता पर सिर्फ चीनी का ,  मिठाई का नहीं क्यूंकि मिठाई का मूल्य में दिनों दिन बढ़ोतरी हो रही है बेशक चीनी शुष्ट पड़ी हो वस्तुतः चीनी का भी ज्यादा मजा नहीं लिया जा सकता क्यूंकि इनका साइड इफ़ेक्ट का कोई तोड़ नहीं है और एक बार इन्होने अपनी ताक़त का अजमाइश कर दिया तो जिंदगी भर आपको  भुगतना पड़ सकता है ऐसे में चीनी से ज्यादा करीबी, नुकशानदेह है,  सावधान रहे!

दरअसल में एक तरफ ईंधन के मूल्य में गिड़ावत वही सभी प्रकार के रोजमर्रा के वस्तु हो अथवा खाद्य प्रदार्थ उनके दाम नीचे जाने के बजाय आसमान को छूने में लगे हुए है ऐसे परस्थिति में सरकार और वृत्त मंत्री  के योजना पर प्रश्न चिन्ह  लगाना कतई अनुचित नहीं है क्यूंकि किसी भी तरह के उत्पाद वस्तु हो व आनाज अथवा साग सब्जियों का मूल्य जिस तरह से बेहताशा इजाफा  हो रहे है अत्यंत  चिंता का विषय है क्यूंकि देश के अधिकाधिक लोग के आमदनी में बढ़ोत्तरी काफी जद्दोहद के वाबजूद शुनिश्चित नहीं है कि होगी ही , जबकि मंहगाई रोज एक नयी कृतिमान स्थापित करने में लगी है। यद्दीप सरकार को सब कुछ ज्ञात है इसीलिए तो केंद्रीय कर्मचारी को मंहगाई के आधार पर DA में बढ़ोत्तरी करती रहती है पर ज्यादात्तर गरीब और किसान लोगों का क्या होगा?, जो कि   ८० से ८५ प्रतिशत जनसख्या के लिहाज से है, क्या वे इस बेइंतहा महंगाई से प्रभावित नहीं हो रहे है?, क्या सरकार को इनके लिए कोई जवाबदेही नहीं बनती है?, अगर सच में सरकार इन लोगों प्रति संवेदना रखती है तो क्यों न यथाशीघ्र कारगर कदम उठाती है सरकार और अफसरशाहों  सरक्षण में ही जमाखोरी का खेल हो या उत्पाद वस्तुओं का दाम बढ़ाने का प्रतिस्प्रधा संभव है  अन्यथा सरकार पूरी सिद्दत  से इनके ऊपर नकेल कसें तो इस तरह अन्यास दामों में बढ़ोत्तरी को रोकी जा सकती है , पिछले एक साल में ज्यादात्तर दवाइयों  के दाम में  २० से ४० प्रतिशत  बढ़ोत्तरी देखे गए है इसीलिए  लोग मंहगाई से लड़ने  में असमर्थता के कारण बीमारी से लड़ते रहते है हालाँकि सरकार छोटी -छोटी बातों का ख्याल कहाँ तक करे कारणस्वरूप जनता को उनके हाल पर छोड़ दिए है। 

आखिरकार कब तक एक वर्ग के लोगो के हित का उपेक्षा की जाती रहेगी क्यूंकि सियाशी दाँव -पेंच में संवेदना और विवेक भूल जाते है जिस कारण इनलोगों को सरकार के प्रति उदासीनता भलीभांति देखि जा सकती है जो कि भविष्य में एक क्रांति का जन्म देने के लिए काफी सिद्ध होगी। 

 
आपका क्या प्रतिक्रिया है मंहगाई के संदर्भ में जरूर अवगत करायेगा अपने टिप्पणी के माध्यम से।

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