मंगलवार, 26 नवंबर 2013


*क्या होगा AAP का ?*

 AAP  ने जिस तरह  से अपने को पेश किया, बांके ! लोगो को अपने नेताओ के प्रति जो भी थोडा बहुत विश्वाश था उनका भी आघात हुआ हैं, इन्होने जितना भी दावा किया था सारे के सारे ढरे रह गए। लोगो को इनके प्रति जो रुझान थे वे भी अब नहीं देखे जा सकते हैं। लोगो का जो धारणा ( कथन) को भी सार्थक किये कि राजनीती एक ऐसा  पेशा हैं जिसमे अच्छे लोग नहीं जा सकते और जायेंगे भी तो अच्छे बन कर रह नहीं सकते। अरविन्द केजरीवाल शुरू से ही  काफी महत्तवाकांक्षी दिखते थे उन्होंने एक प्लान कि तरह अपनी सामाजिक कार्य का पूरा उपयोग किया, सोशल वर्क के बहाने उन्होंने अपनी राजनीती पृष्ठभूमि को तैयार किया फलस्वरूप अन्ना का जो आंदोलन को अपनी इर्द गिर्द ही समेत कर रखा और कुछ और महत्तवाकांक्षी व्यक्ति को प्रेरित करके  जो उनके राजनीती के अखाड़े में उनके साथ हो जैसे ही उनको अहसास हुआ कि उपयुक्त समयअ गया हैं अपनी आंकाक्षा को अंजाम तक पहुचाने को, जरा  भी अबिलम्ब किये बिना अपनी पार्टी कि नीव रख दी। इसी कारन बहुत से ऐसे लोग थे जो जनलोक पाल आंदोलन को मोरल और कंसेप्टुचल सपोर्ट कर रहे थे विस्मित हो गए क्यूंकि उनलोगो को आभाष हो गया था कि इनका जनलोक पाल आंदोलन के पीछे मैंन मोतिव क्या हैं? और अन्तः वे लोग इनसे कटते गए। कुछ लोग जनलोक पाल आंदोलन कि ख़ात्मा का दोषी भी अरविन्द केजरीवाल को मानते हैं, जिसे नक्कारा नहीं जा सकते है। इन अवांक्षित घटनाक्रम के बाबजूद एक जन समूह विशेष AAP  से उम्मीद कर रहे थे कि जो आज के जो राजनीती हालात हैं उसमे शायद ये संजीवनी का काम कर जाये और इमनदार और कर्मठ लोगो को राजनीती में भागीदारी का मोका मिले  इसलिए लोगो ने तन, मन, धन से इन लोगो का सपोर्ट किया। AAP का जो हर्ष हुआ है इनसे वे लोग ही हतोत्शाहित हुए हैं जो कि AAP के लिए अच्छी ख़बर नहीं क्यूंकि वे लोग थे जो  AAP पार्टी का आगे का रास्ता परस्त करने वाले थे पर वे भी अपने को थीड़े -थीड़े अलग कर रहे हैं।
ये तो AAP की  अतीत हैं, लेकिन इनकी  भविष्य दिल्ली के चुनाव पर ही निर्भर हैं यदि इस चुनाव में  वे दहाई का आकड़ा नहीं छूटे हैं तो  AAP की उदय से पहले ही अस्त हो जायेगी और एक छोटीसी क्षेत्रीय पार्टी बन कर रह जायेगी जिसका वजूद ढूढने पर भी नहीं मिलेगा। इनका एजेंडा भी इसी ओर इशारा कर रहा हैं कि पार्टी के कर्णधार को पहले से ही ज्ञात था कि वे जीतने  नहीं जा रहे हैं इसी कारन तो उन्होंने जनलोक पाल विधेयक अपने एजेंडा के प्रथम पंक्ति में जगह दिया अन्यथा यह तो सबको पता हैं कि इस तरह का कानून लाने  का अधिकार प्रधानमंत्री और सदन का होता हैं नि कि राज्य  सरकार कि। सबसे बड़ी वजह है कि पढ़े लिखे तबके इनलोगो को भाव देना ही बंद कर दिया और अवगत हो गए हैं कि क्या हैं AAP का मनसा?  अंत में AAP और अरविन्द केजरीवाल से अनुरोध करूँगा, जनाब ख्वावी पुलाऊ पकाना  बंद कीजिये क्यूंकि देश कि जनता अब ऐसे लोगों और पार्टीयों से पहले ही त्रस्त हैं यदि आप चाहते हैं कि लोग आप पर विस्वास करे तो अपना एजेंडा और मोटिव दोनों को बदले ताकि जनता फिर से आप और आपकी पार्टी पर विस्वास करना शुरू करे।

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