मंगलवार, 5 नवंबर 2013


 जरा सोचिये :-
यूँ तो पुरे सिस्टेम ही निष्क्रिय हो चुके हैं पर जब रेलवे कि बात होगी तो सबसे दैनीय दौड़ से गुजर रही इस सरकार ने  अभी तक ५ बार रेलवे मंत्री को बदल चुकी  हैं अनेको बार यात्री किराया हो या माल भारा हो बढ़ाये गए हैं फिर भी रेलवे कि हालत तस से मस नहीं हुआ। UPA सरकार ने इसका सबसे ज्यादा राजनीती इस्तेमाल किया हैं जो ना रेलवे के लिए सकारात्मक रहा और ना पब्लिक के लिए। आखिर सरकार ये तो तय करनी ही होगी कि रेलवे का मुख्य उद्देश्य क्या है ? अगर सेवा ही उद्देश्य हैं तो बेइन्तहा किराये बढ़ाना कहाँ तक उचित हैं, अगर मुनाफा कमाने का उद्देश्य हैं तो क्यूँ  ना इसे प्राइवेट करदिया जाता ताकि इसकी सेवाका कि क्वालिटी और एक्यूरेसी दोनों में काफी सुधार होगी। आखिरी में ये जरुर कहूंगा कि सरकार दोनों में से किसी एक उद्देश्य को चुनकर उस पर फोकस करे तो शायद यही पब्लिक के हित में होगी। जरा सोचिये आखिर क्यूँ ?,

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