गुरुवार, 23 जनवरी 2014




लचर बैंकिंग प्रणाली के लिए कौन जिम्मेवार हैं ?



किसी भी  देश के आर्थिक उन्नति में देश की बैंकिंग प्रणाली का अहम भूमिका होता हैं। एक तरफ जँहा उपभोक्ता महँगाई से त्रस्त हैं वही दूसरी तरफ लचर बैंकिंग प्रणाली से उपभोक्ता को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता हैं। न्यू टेक्निक से बैंकिंग प्रणाली को आधुनिकता करने की कोशिश की तो जा रही हैं जो बैंकिंग काम काज को तो सरल बनता ही हैं पर उपोभोक्ता भी इसका लाभ उठा रहे हैं जिसे झुठलाया नहीं जा सकता है परन्तु आधुनिकता के होर में सरकारी और गैर सरकारी बैंक दोनों अग्रसर हैं लेकिन इनके आधुनिकता के पायदान पर जो खामिया हैं उनसे उपभोक्ता उपयोग के दौरान भुगतते हैं जबकि  उस खामिया का लाभ अपराधिक छवि के लोग भरपूर उठा रहे हैं नतीजन उपभोक्ता हमेशा किसी न किसी परेशानी को लेकर बैंक का चक्कर लगाते रहते हैं। 


यद्दिप समस्या से निज़ात दिलाने को लेकर बैंकिंग कर्मचारी के पास न ही प्राप्त जानकारी रहती है न ही अनुकूल इच्छा शक्ति ताकि यथाशीघ्र समस्या से उपभोक्ता को निज़ात दिलाये। उपभोक्ता इन समस्याओ के हल को लेकर अनेको बार बैंक का चक्कर लगाते हैं पर बैंकिंग कर्मचारीयों का प्रतिकूल व्यवहार और नकारात्मक प्रयाश को देखते हुए आर्थिक नुकशान भुगतने के लिए खुदको तैयार कर लेते हैं। अन्तः आर्थिक नुकशान को झेल जाते हैं। 

 

हैरत तो तब होता हैं, जब बैंक के अध्यक्ष को लिखित शिकायत भेजी जाती हैं पर उनके यहाँ से भी साकारत्मक जवाब नहीं मिलाता हालाँकि शिकायत को फॉरवर्ड करने की अक्नोलेजमेंट जरुर मिलता है कि उनके तरफ से सर्किल हेड ऑफिस को शिकायत फॉरवर्ड कर दिया गया हैं। अब उस शिकायत के ऊपर उनको ही करबाई करने को कहा जाता हैं जिनके खिलाफ शिकायत की जाती हैं। उस कहावत को चरित्रार्थ करते हैं कि गुनहगार भी खुद, जज भी खुदको मलतब फैसला तो अपने हक़ में ही लेना अर्थात शिकायत को लीपा -पोति करके किसी डस्टबिन में डाल देते हैं।  इंतहा तो तब हो जाती हैं जब इसी शिकायत को आर.बी. ई. के आलाधिकारी को भेजा जाता हैं,  पहले तो ये अस्वासन दिया जाता हैं कि शिकायत के ऊपर उपयुक्त करबाई की जायेगी और अचानक उनके यहाँ से यह सूचना मिलता हैं कि शिकायत को खारिज़ की जाती है क्यूंकि शिकायत के गहराई में नहीं जाया जा सकता हैं  पर इस पत्राचार के दौरान ये लिखना नहीं भूलतें हैं कि इसका पुनः शिकायत नहीं करे क्यूंकि इसके ऊपर पुनः विचार नहीं किया जायेगा। आर.बी. ई. के गवर्नर को जब इस शिकायत फॉरवर्ड किया जाता हैं तो उनके तरफ से शिकायत को देखने की जरुरत भी नहीं समझे जाते हैं क्यूंकि वहाँ से कोई अक्नोलेजमेंट भी नहीं भेजा जाता हैं। वस्तुः जो बड़े ओहदा पर होते हैं उनके लिए शायद ये जरुरी नहीं  होता है  कि आप के शिकायत प्राप्त करने  के पश्चात अथवा करबाईको लेकर किसी प्रकार का जवाब दिया जाय। 


आखिरकार सूचना के अधिकार के माध्यम से जान पाया कि लगभग में साढ़े नौ हज़ार शिकायत बैंकिंग ऑम्बुड्समैन दिल्ली सर्किल  को  अप्रैल से अगस्त के बीच की गई जिस में से सिर्फ १८ शिकायत उपभोक्ता के पक्ष में दिया गया बाकि को या तो खारिज़ कर दी गयी और नहीं तो सुलह करबा दी गयी जबकि  केंद्रीय सुचना उपायुक्त के पास लगभग में पाँच हज़ार आवेदन पेंडिंग हैं जिसका सुनवाई की जानी हैं। वास्तविकता में बैंकिंग प्रणाली  के इर्द -गिर्द किस कदर भ्रष्टाचार विद्दमान हैं ये बड़ी आसानी देखी जा सकती हैं। सवाल यहाँ ये भी उठता है कि बैंकिंग प्रणाली का जो लचर स्थिति हैं जानबूझकर सरकार इसे नज़र अदाज़ कर रही है जबकि आर.बी. ई. के पास फुर्सत ही नहीं हैं जो इसे दुरस्त करने के उपाय के बारे में सोंचे। 

 

बरहाल इस देश का लोग हो अथवा उपभोक्ता इस लचर बैंकिंग प्रणाली के कारण प्रतिदिन किसी न किसी समस्या से निपटते रहते हैं  और न चाह कर भी जिसे झूझने को मज़बूर हैं फिर भी खबर लेने वाले कोई नहीं।  यदि कॉन्जुमर फोरम की बात करते हैं तो ज्ञात यह होता है कि उनकी कार्य क्षेत्र जितना बड़ा हैं उतना ही कम उनको अधिकार दिया गया मसलन उपभोक्ता को संतुष्ट करना उनका सामर्थ्य नहीं। अन्तोगतवा, उपभोक्ता हो या ग्राहक अपनी रोज़ाना की समस्याओ को लेकर कहाँ जाय, जंहा सरलता से शिकायत का समाधान और संतुष्टि मिले?




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