गुरुवार, 16 जनवरी 2014



 अबकी बार, बड़का चाचा का दिल बाग़ बाग़ हो गया !



भईया, देश की मीडिया छोटी से छोटी खबर को बढ़ा चढ़ा कर दिखाने की फिदरत हो गयी सफई का महोत्सव को खामोखां तिल का तार बना दिया नहीं तो क्या नेता को भी तो मज़ा चाहिए न भाई , वेसे भी इतनी बड़ी सूबे को चलना सरल काम थोड़े ही हैं। बेशक़ लोग अनाप सनाप बोलते रहते है कि कोई प्रगति  नहीं  हुई, अरे  बाबूजी, अब फिल्मों का सूटिंग हमारे प्रदेश में हो रही हैं और क्या चाहिए?  आखिर इतने बड़े राज्य को चलाने के लिए कितने माथापच्ची का काम हैं इसलिए तो साल में थोडा फुर्सत तो निकाल कर मनोरंजन कर लेना का हक़ तो सबको हैं। लला को बरसों की तमन्ना थी कि सलमान को अपने यंहा नचाये और बैठकर उनके नृत्य का लुप्त उठाये, चलो इस सफई महोत्सव के पश्चात उनकी भी ये हसरतें पूरी हुई । १४ दिन का यह महोत्सव में वाकई मुड़ रिफ्रेश हो गया अब एक साल तक फुर्सत कहाँ ?  पर ये मीडिया फिरसे मूड ऑफ करने में लगे हैं, मेरे भाई , बाबूजी, अब तो बक्श दो। कौन सी आफत आ गयी भाई, सलमान ही तो आया, अरे,  उनको भी तो पता चले रील लाइफ के दबंग भले वे हो पर रियल लाइफ में तो दबंग हम ही लोग हैं। पैसा तो बहुत खर्च हुआ पर मजा भी खूब आया मलिका का ओ गाने, हाय! जब मर्डर फ़िल्म आयी थी कई बार सोचा सिनेमाहॉल में जाकर देखे पर किसी के नज़र में आ गया तो उम्र के  इस आखिरी पड़ाव में बड़ी बदनामी होती पर बिना बदनामी के वही गाने सुन लिया वे भी मलिका सेरावत के डांस के साथ। हाय रे माधुरी की डांस, मन तो कह रहा था कि जाकर एक दो ठुमके मैं भी लगा लू,  पर अब वह उमर नहीं रही अगर कोई हड्डी इधर का उधर हो गया तो  मुसीबत ही हो जायेगी, जो भी हो पर अबकी बार दिल बाग़ बाग़ हो गया।

उसी समय मीडिया वाले आकर उनसे पूछते हैं, '' आज तो महोत्सव  सम्पन हुआ, इसके बारे आप क्या कहना चाहेंगे"?

"हँ भईया, महोत्सव बढियां से सम्पन हुआ" उन्होनो कहा।
"मंच का तो जवाब नहीं इस तरह का मंच तो हॉलीवुड के ही फिल्मोत्सव में देखनो को मिलता है, अच्छा मंच तैयार करने के लिए कितना खर्च किये गए ?' पत्रकार ने पूछा। पत्रकार इस सवाल को सुनकर कुछ बोल ही पाते अचानक किसी का आवाज़ सुनाई पड़ी, " बड़का चाचा, रामू चाचा आपको बोला रहे हैं। "
महाशय उनके साथ हो लिए, "देखो चाचा, रामू चाचा ने सबको कह रखा है कि चैनेल वाले से दूर रहने के लिए।"

देखिये, यही मंच है जहाँ पर कल रात सलमान खान, माधुरी दीक्षित, मलिका शेरावत और कपिल भी आये थे, यही गैस हीटर हैं जिसके गरमी में गरमजोशी के साथ उस रंगारंग कार्यकरम का मजा लिए जा रहे थे। पर मुज़फ्फरनगर में दंगा पीड़ित का खबर लेने वाला कोई नहीं हैं। दंगा पीड़ित के शिविर में तीस से ज्यादा बच्चे ठिठुर का दम तोड़ दिए हैं। इसी दौरान मोबाइल से रिंग टोन बजने की आवाज़ सुनाई दी, झट से मोबाइल को कान से लगाया तो पता चला कि अरविन्द केजरीवाल का प्रेश कॉनफ्रेन्स को लाइव टेलीकास्ट किया जाना हैं , इसलिए इस ब्रेकिंग न्यूज़ को यही ब्रेक देना।

बड़का  चाचा एक बात जरुर सच कह गए कि मीडिया वाले किसी भी खबर इस कदर बढ़ा चढ़ा कर पेश करते हैं कि उनके व्यंग और कटाछ में खबर की तथ्य ही तर्कहीन हो जाती हैं। दरशल में लाइव टेलीकास्ट और ब्रेकिंग न्यूज़ का जमाना जबसे आया हैं,  हर न्यूज़ को टी.आर.पी के पैमाने पर मूल्यांकन किया जाता हैं और किसी भी न्यूज़ को चलाने से पहले या तो मीडिया कंपनी की आर्थिक लाभ को टटोलें जाते हैं नहीं तो न्यूज़ के जरिए पत्रकार और एंकर अपनी भविष्य को परस्त करते हैं अन्यथा पत्रकारिता से जुड़े हुए लोग सभी नेता को कोसने में कोई कसर नहीं छोड़तें अचानक नेताजी का टोपी पहनकर खुद नेताजी बन जाते।  आखिरकार अतीत में झांककर तो देखे ही जा सकते हैं कि अभी तक उन्होंने जो भी अपने पत्रकारिता के आढ़ लेकर काम किये उनमें खुदका भी हित तो कहीं विद्दमान नहीं थे।
 नेता अपने रसूख़ के दम पर हो या पैसो की खनक पर अभिनेता को नाचते हैं जबकि अभिनेता पैसा को देखकर नाचने से मना नहीं कर पाते हैं क्यूंकि अभिनेता का कहना हैं" पैसा फेक तमाशा देख"। कदाचित उनके दिल में देश की आवाम प्रति संवेदना के लिए कोई जगह है।  अन्तः इस लोकतत्र में मीडिया का ही भरोषा हैं इसीलिए मीडिया से दरखास्त है कि आप अपनी भूमिका निस्ठा और संवेदना के साथ निर्वाह करे नहीं तो लोकतंत्र  में सिर्फ तंत्र बच पायेगा जबकि लोक का नामोनिशां इस कदर गुम जायेगा कि ढूढ़ना सरल नहीं होगा जिस तरह का आज की परिदृश्य हैं ………………।

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