इस विपदा की घड़ी में,चाहिए एक और गाँधीपूरी हो हमारी आज़ादीलाये ऐसा आंधीहिमालय फट रहा हैं,गंगा करे उफानमिटटी अपनी वज़ूद ढूंढे,मुर्छित हुए किसानचाहिए एक और गाँधी…।मुन्नी भूखी सो रही हैं ,दम तोड़ रहा हैं रुपैयाभाबी की माँग सुंनी पड़ी,सहादत दे रहे हैं भैयाचाहिए एक और गाँधी…।महंगाई की ओले पड़े हैं,निगल रहा हैं भर्ष्टाचार,बेशर्मी ने हद कर दी,खो गए हैं शिष्टाचारचाहिए एक और गाँधी …।हर सूबे के हैं अपने मनसूबे,कैसी होगी आपसदारीमाफियाओ का राज हुआ हैं,किनको भाए ईमानदारीचाहिए एक और गाँधी …।चोरो के हाथ में चाभी हैं,बेईमान करे हैं कोतवालीस्विस बैंक जमा हैं पूजी,अपनी बैंक तो हैं खालीचाहिए एक और गाँधी …।देख इन भोले भाले को,जो बन पड़े हैं महज़बीभेद भाव में उलझा कर,बना रहे हैं अजनबीचाहिए एक और गाँधी …।
गुरुवार, 22 अगस्त 2013
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