शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

जिसने लूटा वे भी इस कदर ना लूटा की हो जाये हम कंगाल,
अपनो  की  ये हिमागत हैं गैरो का  कहाँ से होता ये  मजाल
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे सावाल ………… 
हर चिंगारी शोला बन गए  क्या ये भी था इतेफाक
जर्रा जर्रा हिल गए इरादा था कितना उनका  नापाक
इनके तपस में जल गए हमारी हरएक ख्वाब फिर भी ना  किया कोई ख्याल
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे  सावाल ………… 
आबुरु भी अब महफूज नहीं  दोलत का किसे हैं शोक
अराजकता फ़ैल रही हैं , किसमें हैं दम जो लेगा रोक
चीखते रहे चिल्लाते रहे फिर भी हुआ ना  कोई मलाल
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे  सावाल ………… 
जवानों के सहादत पर वे हैं जो साधते रहे हैं अपना स्वार्थ
जिनके  एक इशारे पर हजारो -लाखो हाज़िर हैं सेवार्थ
हम तो खातिरदारी करते रहे पर वे बुनते रहे जाल
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे  सावाल …………
 जिनका ना  कोई महज़ब,  धर्म और ना हैं कोई उसूल 
अपनी हित खातिर सबकुछ  निलाम करे,यही हैं इसका वज़ूद
आपस में हम लड़ते रहे, बनके हितेशी कराते रहे बबाल
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे  सावाल …………
 जमुहुरिहट के नाम पर परिवारवाद को साधते रहे
खामोश करके हमें हमारी मर्यादा को लाँघते रहे
हमारी थाली में नमक डालकर खुद हो गए मालामाल
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे सवाल …………
दुश्मन हमारे घर में घुस कर, करते रहे हम पर बार,पर किया ना पलटवार
हम जख्म ले कर निहारते उनके तरफ और वे  करते रहे भष्टाचार
यह कैसा जनतंत्र हैं की जनता की वारी पांच शाल में एक बार.…
ये तो जहांपनाह हैं हम सबका अजी कौन करे इनसे सवाल …………
 



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