शुक्रवार, 13 सितंबर 2013


शहर बसते हैं घर से, मकान तो सिर्फ नुमाइश के लिये होते हैं
 रिश्ता तो यूँ ही बन जाते हैं, मिलके अपनोके ख्वाव संजोते हैं
ना  करो जुरअत ऐसी की, उनके ख़ुशी और गम से ना वास्ता हो
गर मिलो तो सरम से सर झुक जाये, और छुपने  का ना रास्ता हो

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