RS Jha
बुधवार, 11 सितंबर 2013
घर जल रहा था मेरा पर चूल्हे में आग नहीं
जल गयी हर एक ख्वाहिश पर पकी साग नहीं
इतने बहे आशुं आँखों से की बहने लगी समुंदर
आशुं बुझा पाता आग, काश ! होता ना ऐसा मंजर
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