सोमवार, 23 सितंबर 2013

फिक्की बात:-कितनी हैरानी की बात हैं कि अनुमान मात्र पर एक आई. ए. एस. अधिकारी को निलंबित किया जाता हैं। जब लगभग तीन महीने तक न्याय पालिका और ही केंद्र सरकार से संतोष जनक जवाब न मिलता देख, अन्तः वह  असहाय अधिकारी उस सूबे के मुख्यमंत्री से मिलकर माफ़ी मांगते उस कारण जिसमे उनकी कोई गलती थी ही नहीं, तदुपरांत उस अधिकारी का  निलंबन ख़ारिज की जाती हैं। क्या जो अधिकारी अपने स्वाभिमान के साथ समझोता करके बिना अपराध की गलती मांगी हैं, अब वह इमानदारी और निष्ठा से काम कर पायेगी? और दूसरी सबसे गंभीर प्रश्न यह है की अपने राजनितिक हित साधने के लिए, क्या  इमानदार और कर्मनिष्ठ अधिकारी को बलि का बकरा नहीं बनाया जा रहा हैं ?
इस बीच में जो मुज़फ्फर नगर में दंगा हुआ जिसमे उसी  सूबे के मुख्यमंत्री का संवेदनहीनता और कई खामिया उजागर हुआ। क्या वे उनके लिए जनता से माफ़ी मांगगे  और जनता उनको माफ़ कर देंगे? जरा सोचिये, मैं ज्यादा कुछ नहीं कह सकता क्यूंकि इन दिनों अभिव्यक्ति पर भी पावंदी हैं।

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