बुधवार, 11 सितंबर 2013


  इस कदर अराजकता देखने को  पहले कभी नहीं मिला था जो इन दिनों देखा जा सकता है

वैसे तो उम्र और अनुभव के लिहाज से  मैं कोई  दावा नहीं कर सकता लेकिन इतना जरुर कहूँगा की  इस कदर अराजकता देखने को  पहले कभी नहीं मिला था जो इन दिनों देखा जा सकता है। वोट की राजनीती के खातिर चंद मुठी भर लोग बेगुनाहों का खून बहा रहे, हर कोई दुसरे को दामन को मैले कहते पर यह सच हैं की किसी का भी दामन पाक नहीं हैं। ढूढने पर सबके दामन पर कीचड़ की छीतं हैं। देश में एक तरफ खादी पोशाकपोश लुट और व्यवसन फैला रहे हैं दूसरी तरफ ब्यूरोक्रेसी ने अपनी जवाबदेहि से मुख फेर लिए हैं। यदि  दस से बीस हजार का अगर कंप्लेन R.B.I. को किया जाय तो बहाने बनाकर तीन चार महीने तक यूँ चांज करते रहंगे और जब उनसे कंप्लेन के कारबाई के बारे में जानकारी मांगी जाय तो यह कह कर पला झाड़ लेते हैंकि कंप्लेन  ख़ारिज कर दिया क्यूंकि की उनके पास टाइम ही नहीं इन छोटी-छोटी समस्याओ को निपटाने के लिए। वाकई हैरानी की बात नहीं हैं
रुपैया की हालत  देखकर उनका संजीदा का  आकलन इसी बात की जा सकती हैं कि  कितनी जवाबदेही से काम कर रहे हैं।  डिपार्टमेंट ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स एंड पब्लिक गरीवन्सेज  जो पीएमओ के अन्दर आते हैं, जिस तरह से इनका काम काज हैं यह  कहना कतई गलत नहीं हैं की PM के तरह ही ये भी मौन हो गए हैं। इसी का नतीजा हैं की हर तरफ लुट मची हैं।
वैसे भी सरकार का  काम काज  संतोषजनक नहीं हैं पर जिस कदर ब्यूरोक्रेसी का रवैया हैं  उससे  लोग निराश और हताश हैं और लोग इस तरह के अराजकता से त्राहिमाम कर रहे हैं।  एक तरफ लोग मंहगाई से त्रस्त हैं दूसरी तरफ  अराजकता और भ्रष्टाचार से खिन्न हैं,  लोगो को समझ में  नहीं आ रहा हैं की आखिरकार इन जटिल समस्या का समाधान कौन करेगा? अगर बात सांसद का हो तो अपने  पक्ष में बिना कोई बिघ्न के  सारे विधयक पास करा लेते हैं चांहे सर्वोच्य न्यायलय के  खिलाफ ही क्यूँ ना जाना पड़े।  पर जब बात आम आदमी के हक से जुडी हो तो सांसदों हिसाब किताब करने बैठ जाते हैं की इस बिल को पास कराने से उनका राजनीतीक लाभ कितना होगा  और यही वजह हैं कि  कुछ बुनयादी और जरुरत की बिल  भी लम्बे  अर्से  से संसद में लटके पड़े हैं।
चाहे केंद्र सरकार हो अथवा राज्य सरकार आम आदमी उनसे जान माल का सुरक्षा की आशा करते हैं, पर ना केंद्र सरकार और ना ही राज्य सरकार आम आदमी की सुरक्षा की गारंटी  देती  लेकिन भोजन  की गारंटी देती हैं क्योंकि इसमें उनको जो  अपना वोट नजर आते  हैं।  जिस कदर अंतरकलह हैं इसीका परिणाम हैं कि  चीन और पाकिस्तान  हमें आँख दिखा रहे हैं, मुंह तोड़ जवाब देने के बजाय हमारी सरकार नजरंदाज कर रही हैं।  दिल्ली हो या कोलकता दस से  बीस  प्रतिशत बंगलादेशी रेफुज़ी हैं जिसको  सरकार ने वोट बैंक के लिए सरक्षण  दे रखी हैं, परिणाम स्वरुप ये लोग क्राइम में लिप्त हैं जिससे वंहाके आम आदमी हमेशा अपने को असुरक्षित महसूस करते हैं और उन लोगो को पोलटिकल लोगो का इतना सह मिलाता हैं की उनके होसला बुलंद हैं नतीजन दिन दहाड़े लुट और डकैती  जैसी घटनाओको अंजाम देते हैं पर स्थानीय लोग इतना   भी हिम्मत  नहीं जुटा पाते  हैं की उनके खिलाफ पुलिस कंप्लेन  कर पाए। अगर बिशेष परिस्थिति में   कंप्लेन कर भी दिए तो पुलिस की मजाल नहीं उनके खिलाफ कोई  करवाई कर सके। पुलिस तो पहले से सवेदनहीन हुए पड़े हैं नहीं तो लोगो में इनके प्रति इतना उदाशीनता क्यूँ होता ?
परिस्थिति कितनी ही विपरीत हो  पर हम आशावादी हैं और आशा करते हैं कि अब अति हो रहा हैं, तक़रीबन इन सभिका  अंत सुनिश्चित हैं।  देखना यह कि अंत यधासिघ्र होता हैं या अभी और हमें इंतजार करना होगा………



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