क्या अन्ना को डर ही हैं इसलिए तो रालेगण सिद्धि में आंदोलन का श्रीगणेश किया ?
जनलोकपाल आंदोलन, जिसके बलबूते पर कितनो आम आदमी से खास आदमी हो गए उन्ही के कोख में जन्में पार्टी आज दिल्ली में अपनी खाशियत का डंका बजा रही है, पूरी दिल्ली की जनता उम्मीद से देख रही हैं उनके तरफ पर उनके पास अब फुर्सत कँहा कि एक बार जनता से इसके बारे में पूछे कि आखिर दिल्ली की जनता चाहती क्या है? बेचारा अन्ना जो आज रालेगणसिद्धि में फिरसे वही जनलोकपाल बिल लाने के लिए अनसन पर बेठे हुए, क्या अन्ना को डर ही कहा जाय कि फिर उनके आंदोलन के आढ में कोई अपना हित साध जायेगा इसलिए तो इस बार दिल्ली आने के वजाय अपने गाव को ही चुना? खैर, अन्ना के इस आंदोलन में उतनी भारी संख्या में जन सैलाव ना हो पर जो भी हैं वे ईमानदारी और निस्वार्थ भाव से अपनी उपस्थिति दर्ज करबा रहे हैं। यदि अतीत को खंगाले तो हमेशा ऐसा ही होता आया कि आंदोलन का कर्णधार कोई होता हैं, त्याग कोई करता हैं और जब उसकी शेर्य लेने कि बारी आती है कोई और ले जाता हैं । जयप्रकाश के आंदोलन की जो उपज हैं आज पुरे देश को उससे निजात मिला नहीं और आनेवाले दिन में अन्ना की आंदोलन की उपज को भी इन्ही देश को धोना हैं और इसके लिए देश की जनता तैयार हो जाये। ईमानदारी और निस्वार्थ भाव से देश सेवा करने की बात हो तो दावेदारी ठोकने में कोई भी पीछा रहना नही चाहते हैं पर ईमानदारी और निस्वार्थ के नाम पर राजभोग से किसी को भी परहेज़ नहीं हैं। पर ये भी सोलह अना सच नहीं हैं क्योंकिं अन्ना इन आज़ाद भारत में एक ऐसा सख्श हैं जिसे ना राजभोग की ललक हैं और ना ही वे अपनी ईमानदारी का प्रमाणपत्र लेकर घूमते हैं। यदि अन्ना चाहेंगे तो देश के किसी भी प्रान्त से चुनाव लड़ सकते हैं और वंहा से जीत भी सकते हैं पर अन्ना इन सबसे परे हैं। भंगवान से प्राथना करता हूँ कि अन्ना जैसे युगपुरुष को हमेशा हमारे बीच में दे जो हमारी हक़ के लिए अपनी इम्मानदारी और निस्वार्थ मनसे महायुध जारी रखे और इतिहास उनके इस सुक्रम के लिए कृतिज्ञ होकर उन्हें सदेव पूजते रहेंगे।
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