बुधवार, 25 दिसंबर 2013














आज की राजनीती बस एक मौका के इर्द-गिर्द घूमती है.…।

मुलायम सिंह यादव  कहते हैं कहते हैं दंगा पीड़ित के शिविर में कांग्रेस और बीजेपी के कार्यकर्ता हैं कोई  इस बात से इत्तिफ़ाक़ रखता हो या नहीं पर राजनीती में इस तरह के हथकंडे रामबाण का काम करते हैं।  इस रामबाण से विपक्षी को झट से चुप तो  कराही देते हैं वही जनता के समक्ष विपक्षी के सिरे मडकर  अपने को सभी आरोप से  न सिर्फ अलग कर लेते हैं ब्लिक खुद तो चैन के साँस लेते ही हैं विपक्षी को भी किसी कोने पकड़ने को मज़बूर कर देते हैं। बात तो सही है  मुलायम जी, यदि फायदे लेने  की  बात हो तो आप के कार्यकर्ता हैं पर जब मदद करने की  बात  हो तो कांग्रेस और बीजेपी की।

जो लोग शिविर में बैठे हैं वे हालत  के जरुर मारे हुए हैं पर इंसान हैं और इंसान एक ऐसा प्रजाति हैं जो मौका परस्त होते हैं वे लोग भी उन मौका के ताक में होंगे कौन किसका कार्यकर्ता वे है वास्तव में इनका आपको पता करवायेगा ।

वेसे इन दिनों राजनीती में कौन किसका कार्यकर्ता हैं इसका पता लगाना आसान नहीं हैं क्यूंकि राजनीती एक ऐसी नीति है जिसमें कुछ भी अनैतिक नहीं हैं इसलिए तो राजनीती में कोई अछूत नहीं हैं और ना ही किसीको भी किसी से परहेज़ हैं। अवसरवादी इस परंम्परा में बस हर कोई एक मौका के तलाश में रहते हैं। इसीलिए तो आज आआप  कोई मौका नहीं छोड़ते हैं कांग्रेस को गाली देने का पर इन  मौकाओ के बीच यदि कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने का मौका  भी नहीं छोड़ना चाहते हैं। बेचारे, कांग्रेस आज मुखबधिर होकर सब कुछ सुनने के लिए वाध्य हैं क्योंकि कांग्रेस भी एक मौका को खोज रही हैं अन्यथा एक गाली देने वाले को गद्दी का भोग कैसे भोगने देते।

राजनीती बस एक मौका के इर्द गिर्द घूमती हैं दरशल में राजनीती में कोई न अपना और न पराया होता हैं जिनसे राजीनीति का मनसा पुरे होते दीखते हैं उसीके पिछलगुआ बन जाते हैं।  नहीं तो लालू और मुलायम कांग्रेस के विकल्प में थे पर अब वे कांग्रेस में विलीन हो गए इसीका नतीजा हैं कि आज प्रदेश की  राजनीती को देश कि राजनीती से अलग रखे जाते हैं फलस्वरूप देश और प्रदेश की राजनीती मुद्दे से लेकर गठबंधन को लेकर दूर दूर तक कोई समानता नहीं रहते हैं। नितीश कुमार जिन्हे  एक मौका मिला फोरन NDA से अलग होकर कांग्रेस का समर्थन ले लिए और कांग्रेस भी उन समर्थन  देने  के बदले में नितीश कुमार से  कुछ इस तरह का ही अपेक्षा रखती हैं पर नितीश को ऐसा  मौका मिला नहीं जो कांग्रेस की  खातिरदारी करे।

राष्टीय पार्टीयाँ  हो या क्षेत्रिये पार्टीयाँ  हर कोई मौका के ताक -झांक में लगे रहते हैं जैसे मौका मिला सारे बंधन तोड़ कर अपने हित को साधने में लग जाते हैं।  जिस देश में मौका परस्त राजनीती का दौड़ चल पड़ा उसमे कौन और क्यूँ आम आदमी के हित को आगे करे ?

आआपा हो या बीजेपी या कांग्रेस इनके भिन्नता और समानता का गणना करने के वजाय मौका का गणना करके उनके काम -काज का आकलन करे तो इन पार्टी के गुणवत्ता अपने आप  परिचित हो जांएगे क्यूंकि आआपा भी एक मौका का ही देने हैं और इनकी अस्तित्व में आना भी अवसरवादी परंम्परा का ही प्रतीक हैं।

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