रविवार, 15 दिसंबर 2013


 अरविन्द केजरीवाल को ऊर्जा के साथ साथ "आप" को एक  मुद्दा भी देना होगा……

चाहे "आप" हो या कांग्रेस दोनो के लिए  विषम परस्थिति हैं जंहा  "आप" के लिए एक तरफ़ कुआँ हैं दूसरी तरफ खाई वंही कांग्रेस अपनी समर्थन आप को देकर जनता को एक मेसेज देना चाहती कि वे जनता के  मत को सम्मान करती हैं जिससे आगमी चुनाव में कांग्रेस के लिए  हितकर होगा पर "आप" यदि सरकार बनाती हैं उस स्थिति में मेनिफेस्टो को पूरा ना कर पाना, जनता खुदको ठगा समझेगा जो आप के लिए नुकशानदेह होगा   और सरकार नही बनाती हैं तबभी  उनके विपक्षी दल जनाधार के आपमान  का मुद्दा बनाकर इसे  मध्यावी चुनाव में खूब भुनाएंगे।  अरविन्द केजरीवाल के लिए शायद ये क्षण कल्पना से परे हैं कभी इसके बारे नहीं सोचा होगा कि जनता इस चोराहे पर लाकर खड़ा कर देगी जंहा से निकलना बकाये आसान नहीं। कांग्रेस ने एक तरफ राजा और मंत्री को डिफेंसिव होने के लिए बाध्य करदी हैं वंही दूसरी तरफ  मोहरे  यानि मुद्दा को एक -एक कर हवा हवाई करने में लगे हैं। इसके लिए पक्ष और विपक्ष दोनों एक साथ दिख रहें हैं इसलिए तो विपक्ष बिना मान मनोवल के ही लोकपाल में समर्थन देने के लिए हामी भर दी हैं। यदि सब कुछ अनुकूल रहा तो सोमवार को ही लोकपाल बिल राज्य सभा में पारित हो जायेगी  चाहे समाजवादी पार्टी कितना भी उछल -कूद करले। इस बिल को पास होते ही जनलोकपाल बिल का मुद्दा प्रायः अस्तित्व विहीन हो जायेगी क्यूंकि अन्ना ने भी संकेत दिए हैं कि जैसे ही लोकपाल बिल राज्य सभा में पास होते ही अपना अनसन तोड़ देंगे।

"आप" की जीत में ही "आप" कि हार नज़र आ रही हैं जंहा "आप" के कई नेता तो इस जीत से इतना इत्तरा रहे हैं कि  सारी मर्यादा तोड़ने  में लगे हैं, दूसरी तरफ अरविन्द केजरीवाल के लिए विकत परिस्थिति हैं यहाँ पर एक  चुक शायद "आप" को शदा के लिए पत्ता ना साफ करदे तभी तो अरविन्द केजरीवाल जल्दबाज़ी में कोई भी फैसला लेना नहीं चाहते हैं। जो भी दिल्ली की कुर्सी  का खेल काफी मजेदार और रोमांचकारी मोड़ पर जंहा एक तरफ कांग्रेस कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती हैं वंही दूसरी तरफ बीजेपी खड़े होकर कोग्रेस और "आप" कि रशा - कशी का लुप्त उठा रहे हैं। अरविन्द केजरीवाल कि जो व्यक्तित्व बाकय में आज के सभी नेता से अलग हैं जो ईमानदार के साथ साथ  करिश्माई भी हैं पर जिस तरह से आज का हलात हैं उसमें अरविन्द केजरीवाल को ऊर्जा के साथ साथ "आप" को एक  मुद्दा भी देना होगा क्यूंकि कितने भी हल्ला करले जनता अन्ना का ज्यादा सुनते हैं अगर अन्ना ने कह दिया हैं कि लोकपाल बिल जो राज्य सभा में पेश किये गए हैं उस बिल से उनको कोई आपत्ति  नहीं हैं फिर  अरविन्द केजरीवाल के लिए आसान नहीं होगा लोकपाल बिल के खामिया उजागर करने में।  जो भी हो पर कुछ दिन में  बहुत कुछ साफ हो जायेगा इसलिए तो अगले सप्ताह   काफी दिलचस्प होनेवाला हैं। 

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