गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

 एक नया हिदुस्तान बनाये......................

पथरा गई थी अखियाँ बात संजोते -संजोते
उब गए  थे देख खुदका दोहन होते होते
 हर बिघ्न को करके नतमस्तक
अब ओ पल ने दी हैं दस्तक

अतीत को बिसार  कर
भविष्य को निहार कर
एक नया हिदुस्तान बनाये
फिरसे नया हिदुस्तान बनाये

काले काले नीरद हटने वाले हैं
गहरी धुंद की चादर फटनेवाले है
यामिनी को चीर कर
आनेवाला है भास्कर
रश्मि के अलख रोम रोम में जगाये
एक नया हिदुस्तान बनाये......................

छल, बल, दल का ना हो वास
 मन में हो निस्चल विस्वास
जंहा ना कोई भूप, ना  कोई हो दीन
 भाग्य हो सबके अपने अधीन
शहर को गाव में गाव को शहर में बसाये
एक नया हिदुस्तान बनाये...................... 




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