शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

प्रकृति का दोहन मतलब भविष्य का रोदन


ईन दिनों जिस तरह से  प्रकृति का दोहन हो रहा हैं इसीकारण प्रकृति अपनी आपदा से हमें चेतावनी देती रहती हैं कि उनको अगर दोहन करना यथाशीघ्र नहीं त्यागा गया तो इसका दुष्परिणाम इतना गम्भीर होगा जो किसी  कमायत से कम नहीं।  उत्तरांचल की त्रासदी हो या  फैलिने का ओ भयानक रूप,  देखकर पूर्वानुमान तो लगाये ही जा सकते हैं  कि चेतावनी यदि इस तरह का हैं तो  दुष्परिणाम कितना भयावह होगा। इस तरह के चेतवानी से हमे सीख लेने के वजाय हम गलती को बार बार दोहरा रहे हैं जो बेहतर कल को  अभिसाप का शक्ल देगी।
देश के जितने भी नदी और पहाड है उनपर माफियाओ का नज़र लग गए हैं एक तरफ नदी को कुरेद कुरेद कर उनकी वज़ूद को मिटने में लगे है  वही पहाड़ को तोड़ कर रोड़ी और सीमेंट का शक्ल देकर बाज़ार के हवाले कर दिए जाते हैं फिर भी जी नहीं भरता हैं तो पूरी तरह से ही विलुप्त करने के  फ़िराक़ में लग जाते हैं उनके कलेजा को काटकर बड़े बड़े अपार्टमेंट खड़ा कर देते हैं।

हमारे देश में तीन पवित्र नदिया है जिसे त्रिवेणी के नाम से हम जानते हैं उन तीनो नदी में से एक नदी यानि सरस्वती विलुप्त हो गयी हैं जबकि  यमुना विलुप्त होने कगार पर खड़ी हैं वही गंगा मैली होती जा रही हैं।

यमुना की सफाई अभियान 

यमुना की सफाई के नाम पर १५००-२००० करोड़ फण्ड अबतक  खर्च किये गए हैं फिर  भी जब यमुना के प्रदूषित क्षेत्रफल घटने के बजाय बढ़ गये  कितनी हैरानी की बात हैं  इतने सारे रुपैये तो खर्च किये गए यमुना की शुद्धिकरण के वास्ते पर परिणाम विपरीत कैस हो गए ?  इस सच को सिरे से ख़ारिज भी  नहीं की  जा सकती अर्थात समस्या यह है की दिल्ली  में गन्दा पानी के शुद्धिकरण सयंत्र का क्षमता उतना नहीं हैं जितना रोजाना दिल्ली में गन्दा पानी (generate ) पैदा होता हैं, लगभग में १५%-२०% गन्दा पानी यमुना में बिना शुद्धिकरण के प्रवाह (discharge ) किया जाता हैं।  यमूना हरियाणा राज्य से निकलकर दिल्ली होकर उत्तरप्रदेश तक जाती हैं इसलिए गन्दा पानी दिल्ली के अपेक्षा हरियाणा और उत्तरप्रदेश से काफी ज्यादा बिना शुद्धिकरण के प्रवाह किया जाता हैं। दूसरी तरफ से जो कारखाने अभीतक गन्दा पानी शुद्धिकरण सयंत्र नहीं लगवा पाये और लगाकर भी नहीं चला पाते हैं वे भी बेहिचक कारखाने का गन्दा पानी यमुना में ही प्रवाह करते हैं। अभीतक इन राज्यों के सरकार का यमुना के प्रति जो उदासीन रवैया देखा गया हैं जो काफी चिंतित करने वाली बात हैं। यदि यमुना की सफाई के प्रति आम आदमी और समाज सेवी संस्था काफी जागरूक  हैं  इसलिए तो कई समाज सेवी संस्था सामने आकर यमुना की सफाई अभियान में हिस्सा ले रहे हैं उसी प्रकार सरकार को भी इसके लिए जरुरी और कारगर कदम उठाने की जरुरत हैं।

गंगा बचाओ आंदोलन

गंगा इस देश की ही नहीं ब्लिक पुरे विश्व का  धरोहर हैं और गंगा नदी विश्व भर में अपनी शुद्धीकरण क्षमता के कारण जानी जाती है। जिस गंगा में पुरे हिन्दू समाज और हिन्दू धर्मं के आस्था वसते है अर्थात इसमें  डुबकी लगा कर  ही वे खुदको ध्यन समझते हैं  इसलिए तो गंगा  पापनाशिनी कही जाती हैं। जिस गंगा का पानी शोद्धकर्ता के लिए पहेली का विषय बना हुआ हैं कि आखिर गंगा का पानी में कौन सा कंपाउंडस जो इन्हे सालो तक कीड़े पनपने से रोकता हैं वही अध्यात्मिक ग्रन्थ में भी  गंगा का पानी का बड़ा ही महत्व हैं पर आज गंगा का जो पानी हैं पीने योग्य नहीं है ये कहने में थोडा भी  संकोच नहीं किया जा सकता। गंगा जो गंगोत्री से निकल कर गंगा सागर में विलीन होती हैं। इस भौतिकवाद युग में विलासता के लिए ओ सब कुछ करने के लिए बाध्य हैं चाहे वे उचित और अनुचित हो,  इस विलासता सामग्री को इकट्ठा करने से लेकर इनके उपयोग तक हमे ऊर्जा की  आवश्कता होता हैं   ऐवज में  हम एक तरफ ऊर्जा पाने के लिए हर ओ लक्ष्य साधते हैं वही दूसरी तरफ प्रकृति और पर्यावरण के साथ छेड़-छाड़  करते हैं फलस्वरूप बिजली उत्पादन हेतु गंगा की दिशा को ही दिशा हीन कर दिये हैं  सैकड़े -हजारो बांध बना कर।  पापनाशिनी गंगा जो अपने  बल पर उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश , बिहार, झारखण्ड  और पश्चिम बंगाल को दिशा और वजूद दिए  हैं आज इन राज्यों के आर्थिक योगदान में भी  महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गंगा माफियाओ और कारवारियो के  नज़र का  भेंट चढ़ गयी वही इन राज्यों के सरकार की  बेरुखी का भी शिकार बन पड़ी हैं। इन पांचो राज्यो के तक़रीबन गंगा में २ करोड़ ९० लाख लीटर प्रदूषित कचरा प्रतिदिन गिर रहा है। आखिर गंगा इन कचरे के बोझ को कितना और कबतक सहे परिणाम स्वरुप  विश्व बैंक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर-प्रदेश की १२ प्रतिशत बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगा जल हैं और आज गंगा स्नान करने योगया नहीं रही। माफियाओ और सरकार की मिली भगत से एक तरफ सैंड  माफिया ने इन्हे खोद -खोद कर इनके रूप को  कुरूप कर दिए तो दूसरी तरफ भू माफियो ने इनके  तट और छोटी छोटी नदी को भराव करके उसके ऊपर आशियाना बना दिए  इसीकारण मानसून के मौसमं में  सिमित क्षेत्रफल के कारन इनके जलस्तर बेइंतहा  बढ़ोतरी होती है नतीजा हज़ारो -लाखो गाव को अपने आगोश लपेट लेती हैं। हलाँकि इनदिनों सरकार और माफियाओं  के प्रति लोगों का जो आक्रोश हैं वह गंगा बचाओ आंदोलन का रूप ले चूका हैं। अब देखना हैं सरकार गंगा को बचाने के लिए कौन सी सोच को बल देती हैं या यूँ चुपी साधी रखती हैं।

 सरकार की उदासीनता सबसे बड़ी वजह 

जहाँ हमे  नदियो के सफाई अभियान में अहम् योगदान देना हैं  पर भूगर्भ जल (underground  water ) का जो स्तर तेजी से नीचे जा रहा हैं भूगर्भ जल के मापदंड में अचानक  जो वदलाव हुए इसके लिए हम अगर अभी  सजग नहीं हुए तो भविष्य में वाटर वार  का जो कल्पना  की गयी उनको  हक़ीक़त के रूप लेने में हमे शायद वर्षो इंतज़ार नहीं करने पड़ेंगे। भूगर्भ जल का संचय  का मुख्य जरिया  वरषा का पानी ही हैं और इसके लिए जल संचय  प्रणाली(water Harvesting ) के ऊपर जोड़ देना हैं । वस्तुतः  अधिकाधिक लोंगो को इसके बारे जानकारी नहीं हैं  पर उद्योगिक संस्थान  में इनकी अनिवार्यता होने के कारन इन प्रणाली को कागजी रूप में तो  उद्योगिक संस्थान में अधिष्ठापित कर लिया जाता हैं पर कितने प्रतिशत तक  वरषा का पानी को संचय कर पाते हैं इसके निरिक्षण का कोई कारगर यन्त्र नहीं हैं फलस्वरूप अनुमान के आधार पर ही जल संचय  प्रणाली काम कर रही हैं।

३% प्रतिशत जल पीने के योग्य अन्यथा ९७ प्रतिशत जल पीने योग्य नहीं  हैं इसी ३ % प्रतिशत में नदी का जल , झीलका जल और भूगर्भ जल भी आता हैं परिणाम स्वरुप विकल्प सिमित हैं।  जल जितना ही जीव -जंतु के जीवीत रहने के लिए अनिवार्य हैं उतना ही हमारे रोजमर्रा के वस्तु के उत्पादन के लिए भी अनिवार्य हैं। देश की अर्थ व्यवस्था में पानी का बड़ा ही महत्व हैं जिस तरह शुद्ध पानी के बिना प्राणियो का जीवीत रहना कथाचित असम्भव हैं उसी प्रकार शुद्ध पानी के आभाव में न ही कल कारखाने को चलाये जा सकते और न ही खेती की  जा सकती हैं। इसलिए तो पानी को अमृत की संज्ञा दी गयी हैं।



 परन्तु सरकार ने इसके प्रति कभी उत्कृष्ट कदम नहीं उठाई और इसी लचर और भर्ष्ट नीति के कारन एक तरफ जंहा उद्योगिक संसथान में आवश्यकता से कँही  ज्यादा भूगर्भ जल को उपयोग में लाते दूसरी तरफ गन्दा या दूषित पानी को शुद्धिकरण के नाम पर ढकोसला करते हैं। सरकार से NOC लेने के लिए अत्याधुनिक पर्दूषण नियंत्र सयंत्र लगा तो लेते हैं   NOC प्राप्त करने के  पश्चात बहुत कम ही उद्योगिक संसथान जो पर्दूषण नियंत्र सयंत्र लगातार चलाने में रूचि नहीं  दिखाते और न ही पर्दूषण नियंत्र परिषद् के कसोटी पर खड़े उतरते हैं। इसके लिए उद्योगिक संसथान तो दोषी हैं ही  जो उत्पाद लागत कम करने के लिए पर्यावरण के प्रति संवेदनहीनता दिखाते हैं पर हमारे सरकार भी कम दोषी नहीं हैं जो कानून तो बना दी पर सख्ती से लागु करवाने में जो सरकार की असहजता दिखती  हैं इसीका परिणाम है  सरकार के बड़े अफसर से  निरिक्षक तक  मानदंड के नाम पर रिश्वत  लेकर कागज़ में सब कुछ ठीक ठाक कर देते है।  नतीजन  यह रिश्वत देकर उद्योगिक संसथान जवाबदे ही से पला झाड़ लेते हैं जबकि  पर्दूषण नियंत्र परिषद् के अफसर इसे रिश्वत का जरिया बना कर पर्यावरण के नाम पर खानापूर्ति  करने में लगे रहते हैं।  देश के अधिकतर उद्योगिक क्षेत्र का  भूगर्भ जल इतने दूषित हो गया हैं इसे पीने में उपयोग लाना मतलब मौत को दावत देना।

 वायुप्रदुषण में बढ़ोतरी  शुभ संकेत नहीं हैं

 यही कमोबेश हाल वायु प्रदुषण को लेकर भी हैं आज देश के सभी शहर के वायु के मापदंड कभी भी पर्दूषण नियंत्र परिषद् कसोटी पर खड़े नहीं उतरते हैं । वायु प्रदुषण से होने वाले स्वस्थ्य प्रभाव जैविक रसायन और शारीरिक परिवर्तन से लेकर श्वास में परेशानी, घरघराहट, खांसी और विद्यमान श्वास तथा ह्रदय की परेशानी होती  हैं इनसे परेशानी से शहर के ज्यादातर लोग रुबरु होते जा रहे हैं। दिल्ली विश्व के सबसे वायु प्रदूषण से प्रभावित शहरों में से एक हैं पर विश्व के अन्य सबसे प्रदूषित शहर को प्रदुषण से मुक्ति दिलाने के लिए एक से एक अत्याधुनिक प्रदुषण नियंत्रण तकनीक के ऊपर काम कर रहे वही भारत सरकार इसके लिए अभी तक कोई प्रभावी कदम उठाने में नाकामयाव साबित हुई है  शिवाय सार्वजानिक मोटर गाड़ी  में CNG ईंधन अनिवार्यता। कभी कभी तो दिल्ली  में स्मॉग के कारन कोहरे नज़र आने लगते फिर भी हमारी सरकार आँखमुंड कर बेठी हुई  है जो आनेवाले पीढ़ी के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। यदि कार्बन और सल्फर की मात्रा यूँ ही उत्सर्जित होते रहे तो वे दिन दूर नहीं  कि हमारे शहर में रहने वाले बच्चों में कम जन्म दर के अतिरिक्त अस्थमा (asthma), निमोनिया (pneumonia) और दूसरी श्वास सम्बन्धी परेशानियाँ विकसित हो जायेगी।  युवाओं के स्वास्थ्य के प्रति सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार को चाहिए कि  बिना देर किये उपयुक्त कदम उठाये।

 विश्वव्यापी तापक्रम वृद्धि

 आज विश्व के सभी देश विश्वव्यापी तापक्रम वृद्धि को लेकर चिंतित है और आत्मा मंथन करने के लिए आतुर है कि आखिर  विश्वव्यापी तापक्रम वृद्धि किस तरह से सामान्य किया जाय क्यूंकि अन्यास तापक्रम वृद्धि से प्राकतिक  आपदाओ के आने का सूचक हैं।  विश्व के प्रायः सभी देश प्राकतिक  आपदाओ से झुंझने को मजबूर हैं।  यदि पर्यावरण और पृकृति के साथ यूँही खिलवाड़ करते रहे तो वे दिन दूर नहीं जब इस अनमोल विरासत को खो देंगे इसके लिए सरकार के साथ साथ हमलोगो को भी अग्रसर होने पड़ेंगे और इनको बचाने केहर उस प्रयाश को बल देने होगे जो इन धरोहर के बचाने  में अहम् भूमिका निभा सकते हैं।
निम्नलिखित वाक्यो को ध्यान में रख कर इनके ऊपर अमल की जाय तो पर्यावरण और पृकृति को बचाने के संदर्भ में उल्लेखनीय योगदान साबित होगा ;
१. अधिक से अधिक पेड़ लगाये।
२. शुद्ध जल का दुरूपयोग रोके।
३. उद्योगिक संसथान को चाहिए कि प्रदूषित पानी को  इस प्रकार  से शुद्धिकरण करे ताकि पुनः उपयोग ला सके। 
४.  सार्वजनिक परिवहन का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करे।
५. नदी और पहाड के साथ छेड़ -छाड़  पर रोक लगे। 
६. आतिशवाजी को रोका जाय। 
७. जल संचय प्रणाली को कारगर बनाने के लिए जागरूक अभियान सरकार के तरफ से चलाये जाय। 
८. पर्दूषण नियंत्र परिषद् अथवा कमिटी को अधिक  सशक्त और जवाब देहि बनाया जाय। 
९. मोटर प्रदुषण नियंत्र   प्रणाली को और अत्याधुनिक की जाय
१०. पर्यावरण और प्रकृति को राष्टीय धरोहर घोषित की  जाय और इसके रख रखाव के लिए सरकार फण्ड मुहैया करे। राज्य सरकार की जवाबदेही को बढ़ायी  जाय। 

उपरोक्त दिये गए सभी सुझाव के ऊपर सरकार के साथ-साथ हमे भी काम करने की  जरुरत है नही तो हमारे आनेवाले पीढ़ी  सदैव हमे  कोसते रहेंगे क्यूंकि हमारी ये लापरवाही  पर्यावरण के प्रति, उन्हें प्रकृति जो विरासत में मिलेंगे वह सिर्फ अभिसाप बनके रह जायेंगे। 

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